Book Title: Dhyan Darpan
Author(s): Vijaya Gosavi
Publisher: Sumeru Prakashan Mumbai

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Page 19
________________ लोग शरीर के रोगों को मिटाना चाहते हैं, आत्मा के रोग मिटाने की उन्हें चिन्ता नहीं है। शरीर तो पौद्गलिक है, जड़ है। बड़ी बात तो आत्मा में लगा यह कर्ममल का रोग है, जिसके कारण यह जीव बार-बार जन्म-मरण के दुःख उठाता है। उसका एक बार नाश हो जाए, तो जैसे बीज नष्ट होने पर वृक्ष पैदा नहीं होता, उसी प्रकार वह आत्मा शरीर धारण नहीं करेगी। पुराणों में सनत्कुमार चक्रवर्ती की कथा आती है। गृहस्थावस्था में वे अति सुंदर, रूपवान् और शक्तिशाली थे। इन्द्र भी उनकी स्तुति करते थे, परन्तु जब उन्हें कुष्ठ रोग हुआ, तो वह सुंदर काया कुरूप और वेदनामय बनी। एक देव ने उनकी परीक्षा लेने की ठानी। वे एक वैद्य का रूप लेकर मुनि के सामने उपस्थित हुए और कहने लगे- “मैं सभी रोगों का इलाज कर सकता हूँ, जिस रोग का इलाज कराना हो, वह करा लें।' सनत्कुमार तो आत्मा के रोग की दवा मांगने लगे, तब देव ने अपना रूप प्रकट कर क्षमायाचना की। ___ मोह, राग, द्वेषादि विकारीभाव ही असली रोग हैं, जिन्हें मिटाने के लिए हम आध्यात्मिक दुनिया में पदार्पण करें। सिद्धों ने भी सिद्ध–दशा प्रकट की, तो निजात्मा का आश्रय लेकर, इसलिए उनकी छवि यही दर्शाने में निमित्त है कि हमें भी एकमात्र निज आराधना द्वारा स्वयं में वह परमपवित्र दशा प्रकट कर लेना चाहिए। भरत चक्रवर्ती के पास एक बार एक जिज्ञासु पहुँचा। उसे इस बात में संदेह था कि भरत चक्रवर्ती हैं, उनकी ९६ हजार रानियाँ हैं, फिर भी वे इतने बड़े तत्त्वज्ञ और सम्यग्दृष्टि कैसे हैं? वह चक्रवर्ती के पास पहुँचा और उसने कहा- “प्रभु मैं आपके जीवन का रहस्य जानना चाहता हूँ। मैं एक पत्नी से परेशान हूँ। आप ९६ हजार को कैसे संभालते हैं?'' भरत ने कहा, “कल ARMISmSHARA NASIREm - ध्यान दर्पण/17 ध्यान दर्पण/17 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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