Book Title: Dhyan Darpan
Author(s): Vijaya Gosavi
Publisher: Sumeru Prakashan Mumbai

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Page 128
________________ लेश्या के परिवर्तन द्वारा ही जीवन में परिवर्तन सिद्ध हो सकता है। लेश्याओं को बदले बिना जीवन नहीं बदल सकता। लेश्याएं हैं आभामंडल है प्रदर्शन भावों का। जैसा भाव, वैसी लेश्या ना कोई संदेह मन का।। यह कोरा तत्त्वज्ञान नहीं है, बदलने के सूत्र हैं, अभ्यास के सूत्र हैं। भावधारा (लेश्या) के आधार पर आभामण्डल बदलता है और लेश्या-ध्यान द्वारा आभामण्डल को बदलने से भावधारा भी बदल जाती है। इस दृष्टि से लेश्या-ध्यान या चमकते हुए रंगों का ध्यान बहुत ही महत्वपूर्ण है। हमारी भावधारा जैसी होती है, उसी के अनुरूप मानसिक-चिन्तन तथा शारीरिक-मुद्राएं होती हैं। इस भूमिका में लेश्या की उपयोगिता बहुत बढ़ जाती है। ७. भावना और अनुप्रेक्षा प्रेक्षा-ध्यान-पद्धति के दो पक्ष हैं- प्रेक्षा और अनुप्रेक्षा; देखना और अनुचिन्तन करना। चिन्तन की एकाग्रता के लिए प्रेक्षा-ध्यान महत्वपूर्ण पद्धति है। मन की मूर्छा को तोड़ने वाले विषयों का अनुचिन्तन करना अनुप्रेक्षा है। जिस विषय का अनुचिन्तन बार-बार किया जाता है, या प्रवृत्ति का बार-बार अभ्यास किया जाता है, उससे मन प्रभावित हो जाता है, इसलिए उस चिन्तन या अभ्यास को भावना कहा जाता है। अनुप्रेक्षा का आधार द्रष्टा द्वारा प्रदत्त बोध है। उसका कार्य है- यथार्थ को खोजना, अनुसंधान करना, अनुचिन्तन करना, अनुचिन्तन करते-करते उस बोध का प्रत्यक्षीकरण करना। 126/ध्यान दर्पण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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