Book Title: Dhyan Darpan
Author(s): Vijaya Gosavi
Publisher: Sumeru Prakashan Mumbai

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Page 132
________________ इसी अवस्था में पाच मिनट तक रहें। अगर शरीर में दर्द हो, तो सिर्फ देखें। प्रियता -अप्रियता का संवेदन न हो। सिर्फ जानें। अभी अंगूठे से लेकर सिर तक चित्त की यात्रा करें। पूरे शरीर में चैतन्य फैला है। अब जाग्रत अवस्था में आएं, प्राणतत्त्व का संचारण हो रहा है। तीन दीर्घ श्वास लें और कहें -- अरहन्ते सरणम् पवच्छामि। सिद्धे सरणम् पवच्छामि। साहू सरणम् पवच्छामि। केवलिपण्णत्तो धम्म सरणं पवच्छामि।। दीर्घश्वास-प्रेक्षा - श्वास की गति मंद करें। धीरे-धीरे श्वास लें। श्वास लयबद्ध रहे। पहला श्वास लेने में जितना समय लगा, उतना ही समय दूसरा श्वास लेने में लगाएं। श्वास का कंपन नाभि तक रहे। श्वास लेते समय पेट की मांसपेशियाँ फूलेंगी और श्वास छोड़ते समय अंदर जाएंगी। चित्त को नाभि पर केन्द्रित करें। श्वास देखें। मन में विचार आए, तो सिर्फ देखें। ट्रष्टाभाव रहे। श्वास-संयम का अभ्यास करें। अन्तर्यात्रा – प्रेक्षा-ध्यान का दूसरा चरण है – अन्तर्यात्रा। हमारे केन्द्रीय नाड़ी-तंत्र का मुख्य स्थान है- सुषुम्ना। सुषुम्ना के नीचे का छोर-शक्तिकेन्द्र, ऊर्जा या प्राणशक्ति का मुख्य केन्द्र है। अन्तर्यात्रा में चित्त को शक्तिकेन्द्र से सुषुम्ना के मार्ग द्वारा ज्ञान-केन्द्र तक ले जाना होता है। चेतना की इस अन्तर्यात्रा से ऊर्जा का प्रवाह ऊर्ध्वगामी होता है। पांच मिनट तक अन्तर्यात्रा का अभ्यास करें। लेश्या-ध्यान चेतना की भावधारा को लेश्या कहते हैं। लेश्या निरन्तर 130/ध्यान दर्पण DESTINA TIONS Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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