Book Title: Dhyan Darpan
Author(s): Vijaya Gosavi
Publisher: Sumeru Prakashan Mumbai

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Page 10
________________ हैं, फिर भी व्यक्ति आत्मा को स्वीकार न करते हुए पर में ममत्व का या मोहबुद्धि का आरोपण कर दुःखी होता है। अनित्य, अशुचि, दुःखमय पदार्थ को नित्य मानना और सुखमय मानना, यही अविद्या का लक्षण है। ध्यान का अर्थ है- चंचलता का निरोध करना, चंचलता को कम करना। हमारी इन्द्रियाँ जब-जब बाहर जाती हैं, दृश्य को देखती हैं या अपने विषय के साथ संपर्क स्थापित करती हैं और चंचल हो जाती हैं। मन इन्द्रियों के साथ काम करता है। मन की चंचलता इन्द्रियों की चंचलता पर निर्भर है। ध्यान का अंतिम लक्ष्य आत्मा का दर्शन है। हम श्वास को देखें, शरीर को देखें, मूर्ति को देखें, पर वे सारे बाह्य साधन हैं। हमें पहुँचना है, आत्मा तक। हमें स्थूल वस्तु से सूक्ष्म वस्तु पर पहुँचना है। शान्ति की अभीप्सा हर व्यक्ति में होती है। वह शान्ति के लिए प्रयत्न करता है, परंतु मार्ग अस्पष्ट होने के कारण वह उसे प्राप्त नहीं कर सकता है। शास्त्रों में कहा गया है- 'मनैव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः । मन ही मनुष्यों के बंधन और मोक्ष का कारण है। सौ-सौ तीर्थों की यात्रा करने के बावजूद भी जिसने एक अन्तर्यात्रा कर ली, उसकी बात बनी। अपनी अन्तर की एक तीर्थयात्रा सौ तीर्थों की यात्राओं से श्रेष्ठ है। ध्यान मन को शान्त करेगा, साथ ही बौद्धिक-प्रतिभा और मेधा को भी उजागर करेगा। ध्यान करने वाला व्यक्ति अपनी कार्यक्षमता को, उत्पादन क्षमता को बढ़ता हुआ महसूस करता है। ध्यान दर्पण'- यह किताब आत्मार्थी के हाथ में देते हुए मुझे बहुत आनंद हो रहा है, क्योंकि यह सुलभ भाषा में लिखी गई है। इस किताब से ध्यान का आरम्भ तो कर ही सकते हैं। मैं लेखिका नहीं हूँ, इस कारण जो भी त्रुटियाँ होंगी, वे मेरी कमी के कारण होंगी। आप सभी किताब लिखने का मेरा उद्देश्य ध्यान में रखते हुए मुझे क्षमा करें। 8/ध्यान दर्पण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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