Book Title: Dharmik Vahivat Vichar
Author(s): Chandrashekharvijay
Publisher: Kamal Prakashan

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Page 6
________________ - - - - महत्त्वकी सूचना इस दूसरे संस्करणमें, प्रथम संस्करणके समग्र कलेवरका अनेक प्रकारसे नूतन संस्कार-परिष्कार भी करनेसे, प्रथम संस्करणकी अपेक्षा यह दूसरा संस्करण अधिकतर पुष्ट और प्रामाणिक बन पाया है, यह खुशी की बात है / अतः प्रथम संस्करण जिनके पास हो, वे सभी पाठक इस दूसरे संस्करण के अनुसार, प्रथम संस्करण में परिमार्जन कर लें, जिससे कहीं गैरसमझ पैदा होनेका अवकाश न रहे / तीसरे संस्करण निमित्त लेखकीय : . इस पुस्तकके दो संस्करणोंकी हजारों प्रतियाँ, हाथोंहाथ बिक जाने के कारण तीसरा संस्करण (अधिक संख्यामें) प्रकाशित किया गया है / हमारे विरुद्ध भारी होहल्ल मचाया गया है / शास्त्रके नाम पर केवल संघर्ष करनेकी नीतिका यहाँ दर्शन हो रहा है / हमारे पास कई शास्त्रपाठ हस्तामलकवत् हैं / उत्सूत्र भाषणका हमारे उपर किया गिया आरोप बिलकुल निराधार है / जिनका भूतकाल भी अनेक संघर्ष उपस्थित करनेमें ही गुजरा हो, उनके लिए इससे ज्यादा लिखना उचित महसूस नहीं होता / -

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