Book Title: Dharmik Vahivat Vichar Author(s): Chandrashekharvijay Publisher: Kamal Prakashan View full book textPage 5
________________ / 'दूसरे संस्करणका लेखकीय' |- प्रतिवर्ष पर्युषण पर्वाधिराजकी आराधना करानेके लिए गाँव गाँव परिभ्रमण करनेवाले युवकोंके लिए इस पुस्तकका लेखनकार्य मैंने किया है / इसका मनन करनेसे जैन संघोंमें धार्मिक संचालनके बारेमें उठनेवाले प्रश्नोंका समाधान युवक लोग आसानीसे दे सके, यही मेराउद्देश mainamaAML देवद्रव्य, गुरुद्रव्य आदिके संबंधमें वि. सं. 2044 में अहमदाबादमें | संपन्न मुनि संमेलनमें परमार्श कर जो शास्त्रीय निर्णय लिये गये थे, उनका भी इस पुस्तकमें उल्लेख किया गया है / इस पुस्तक का अब दूसरा संस्करण प्रकाशित हो रहा है / इस नवसंस्करण को विशिष्ट कोटिका परिमार्जित स्वरूप पूजनीय आचार्यभगवंतादिने दिया है / प्रथमावृत्तिमें मेरा कहीं कुछ शरतचूक हुआ हो तो उसका भी, उन भगवंतोने अर्थक परिश्रम लेकर परिमार्जन कर दिया है / अतः उनके उस अथक परिश्रमके लिए बहुत अनुगृहीत हूँ / इस पुस्तकमें जो भी विधान किये गये हैं वे शास्त्राधार पर ही किये गये हैं / फिर भी किसी विधानके सामने किसीको असंतोष उत्पन्न हो तो उसके बारेमें हमसे पूछताछ करें, बादमें ही कोई निर्णय करें, ऐसी हमारी प्रार्थना है / / इस पुस्तकका अति कठिन संपादन कार्य, मेरे शिष्यरत्न मुनिश्री | दिव्यवल्लभविजयजीने सुंदर ढंगसे, अथक परिश्रमकर पूरा किया है / उसके लिए वे मेरे सदा स्मरणीय बने रहेंगे। . प्रान्ते, जिनाज्ञाविरुद्ध कुछ भी लिखा गया हो तो, उसके लिए || मैं अन्तःकरणसे मिच्छा मि दुक्कडम् चाहता हूँ / विरार ता. 15-1-95 गुरुपादपद्ररेणु, 2051, पौ.शु. 14 पं. चन्द्रशेखरविजयPage Navigation
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