Book Title: Dharmik Sahishnuta aur Jain Dharm
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

Previous | Next

Page 2
________________ धार्मिक सहिष्णुताऔरजैन धर्म -डॉ. सागरमल जैन धार्मिक सहिष्णुता - आज की आवश्यकता आज का युग बौद्धिक विकास और वैज्ञानिक प्रगति का युग है। मनुष्य के बौद्धिक विकास ने उसकी तार्किकता को पैना किया है। आज मनुष्य प्रत्येक समस्या पर तार्किक दृष्टि से विचार करता है, किन्तु दुर्भाग्य यह हैं कि इस बौद्धिक विकास के बावजूद भी अंधविश्वास और रूढ़िवादिता बराबर कायम है तथा दूसरी ओर वैचारिक संघर्ष को अपनी चरम सीमा पर पहुँच गया है। धार्मिक एवं राजनीतिक साम्प्रदायिकता आज जनता के मानस को उन्मादी बना रही है कहीं धर्म के नाम पर, कहीं राजनीतिक विचारधाराओं के नाम पर, कहीं धनी और निर्धन के नाम पर, कहीं जातिवाद के नाम पर, कहीं काले और गोरे के भेद को लेकर मनुष्य-मनुष्य के बीच भेद की दीवारें खींची जा रही हैं । आज प्रत्येक धर्म-सम्प्रदाय, प्रत्येक राजनीतिक दल और प्रत्येक वर्ग अपने हितों की सुरक्षा के लिए दूसरे के अस्तित्व को समाप्त करने पर तुला हुआ ह। सब अपने को मानव-कल्याण का एकमात्र ठेकेदार मानकर अपनी सत्यता का दावा कर रहे हैं और दूसरे को भ्रान्त और भ्रष्ट बता रहे हैं। मनुष्य की असहिष्णुता की वृत्ति मनुष्य के मानस को उन्मादी बनाकर पारस्परिक घृणा, विद्वेष और बिखराव के बीज बो रही है। एक ओर हम प्रगति की बात करते हैं तो दूसरी ओर मनुष्य-मनुष्य के बीच दीवार खड़ी करते हैं । इकबाल इसी बात को लेकर पूछते हैं - फ़िर्केबन्दी है कहीं और कहीं जाते हैं। क्या जमाने में पनपने की यही बाते हैं ? यद्यपि वैज्ञानिक तकनीक से प्राप्त आवागमन के सुलभ साधनों ने आज विश्व की दूरी को कम कर दिया है, हमारा संसार सिमट रहा है, किन्तु आज मनुष्य-मनुष्य के बीच हृदय की दूरी कहीं अधिक (ज्यादा) हो रही है । वैयक्तिक स्वार्थलिप्सा के कारण मनुष्य एक दूसरे से कटता चला जा रहा है। आज विश्व का वातावरण तनावपूर्ण एवं विक्षुब्ध है । एक ओर इज़रायल और अरब में यहूदी और मुसलमान लड़ रहे हैं, तो धार्मिक सहिष्णुता और जैनधर्मः1 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 ... 34