Book Title: Dharmabinduprakaranam
Author(s): Haribhadrasuri, Jambuvijay, Dharmachandvijay, Pundrikvijay
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
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सवृत्तिके
धर्मबिन्दौ सप्तमं परिशिष्टम्
२९९
निम्मलनाणु । सो मुणिसुरि महु माइ गुरु अइमणहरसंठाण ॥१४॥ मुणिसूरिहिं जितणा गुणा तहिं को संख मुणेइ ? । किं रयणायरु कुवि मुणिवि रयणह संख कहेइ ? ॥१५॥ दुद्धरदप्पगइंदहरि कोइलकोमलवाणि । सो मुणिचंदु नमेहु पर संजमरयणह खाणि ॥१६॥ हरिभद्दसुरिकयगंथ जिणिं वक्खाणिय नियबुद्धिं । सो मुणिचंदु नमेह पर जिव पावहु वर सुद्धि ॥१७॥ जिव बोलइ तिम जो करइ सीलु अखंडु धरेइ । मुणिसुरि पंडियतोसयरु पण्डुत्तरइ दलेइ ॥१८॥ जिंव महुयर आवई कमलि गंधाइक्व्यिसत्त । तिम मुणिसूरिहि सीसगण सुयमयरंदासत्त ॥१९॥ जहिं विहरइ मुणिचंदसूरि तहिं नासइ मिच्छत्तु । चरइ नउलु जहिं ठावडइ सप्पु कि हिंडइ तत्थु ? ॥२०॥ जिम्ह मेहागम तोसियहिं मोरहतणा निकाय । तिम्ह मुणिसूरिहिं आगमणि भवियाणं समुदाय ॥२१॥ सरयागमि जिव हंसुला हरिसिज्जंति न मंति । मुणिसुरि पडिखडिया जणा तुह आगम निब्भंति ॥२२॥ तिह मणुयहं गउ विहल जम्मु जेहिं न मुणिसुरि दिछ । किंव जच्चंधिहि लोयणिहिं जेहिं न ससिहरु दिहु ॥२३|| जाह पसन्ना तुह नयण तह मणुयह सय कालु । हियइच्छिय सुह संपडहिं अनुछिंदहि दुहजालु ।।२४। दूसमरयणिहिं सूर जिम्व तुह उट्ठिउ मुणिनाह । सिरिमुणिचंदमुणिंद पर महु फेडइ कुग्गाह ॥२५।। इति श्रीमुनिचन्द्राचार्यस्तुतिः ॥
अथ श्री देवसूरिकृतवैराग्यगर्भितगुरुविरहविलापः ।२७ निव्वाणगमणकल्लाणवासरे जस्स मुक्कपोक्कारं । सुरसामिणोऽवि कंदंति वंदिमो तं जिणं वीरं ॥१॥ जगगुरुगोयरनेहेण निहणिओ जस्स केवलालोओ। कह कहवि समुभूओ तं गोयमगणहरं सरिमो ॥२॥ गुरुचरणसरोवररायहंसलीलं धरिसु जे सीसा । ते वइरसामिपमुहा पयओ पणमामि तिविहेणं ॥३॥ सिरिवीरजिणेसरतित्थजलहिउल्लासपुनिमायंदं । अइजच्चचरणतवनाणलच्छिमयरहरसारिच्छं ॥४॥ मिच्छत्तमोहमंडलविहडणघणपवणसूरसंकासं । कासकुसुमालिनिम्मलजसभरपरिभरिषभुवणयलं ॥५॥ भुवणयलवित्तसुपवित्तविबुहसेविज्जमाणपयपउमं । पउमद्दहं व पंचप्पयारआयारकमलाणं ॥६॥ करुणागंगाहिमवंतसेलमणवज्जवयणमणिखाणिं । वेरगवगुमम्गप्पयट्टजणसंदणसमाणं ॥७॥ परहियचिंताचंदणवणावलीमलयसेलसमसील । गुणिलोयविसयबहुमाणओसहीरुहणगिरिधरणी ॥८॥
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