Book Title: Darshanshuddhi Prakaranam Aparnam Samyaktva Prakaranam
Author(s): Vijaykirtiyashsuri
Publisher: Sanmarg Prakashan
View full book text
________________
४३८
दर्शनशुद्धिप्रकरणम् - सम्यक्त्वप्रकरणम्
जे संकिलिट्ठचित्ता० ।।१३८ ।। -
स्तवपरिज्ञायाम्-९३* पञ्चाशके-१४/४२* पञ्चाशके-१७/५१* संबोधप्रकरणे-४९३ [ ] स्तवपरिज्ञायाम्-७५*
सीलंगाण सहस्सा० ।।१३९।। ऊणत्तं न कयाइ वि० ।।१४०।। + पंचविहायाररओ० ।।१४१।। → अट्ठविहा गणिसंपय० ।।१४२।। →
वयछक्काई अट्ठारसेव० ।।१४३।। ,
आयाराई अट्ठ उ० ।।१४४।। -
आयार सुय सरीरे० ।।१४५।। →
विगहा कसाय सन्ना० ।।१४६।। + पंचमहव्वयजुत्तो० ।।१४७।। -
उपदेशमालापुष्पमालायाम्-३३४* गुरुगुणषट्त्रिंशत्षट्त्रिंशिकायाम्-३७* प्रवचनसारोद्धारे-५४०*0 धर्मरत्नप्रकरणे-१२६/१* धर्मरत्नप्रकरणे-१२६/२* आलोचनाविधाने-१५ संबोधप्रकरणे-६०६ प्रवचनसारोद्धारे-५४८* व्यवहारसूत्रे-४०६१*0 प्रवचनसारोद्धारे-५४१* [ ] संबोधप्रकरणे-५९८ धर्मविधिप्रकरणे-२७* बृहत्कल्पभाष्ये-२४१-४४* दशवैकालिकनियुक्तौ-५* उपदेशमाला पुष्पमालायाम्-३३०-३३* उपदेशमालायाम्-११/१-४* संबोधप्रकरणे-६००-६०३ प्रवचनसारोद्धारे-५४८* धर्मरत्नप्रकरणे-१२६* धर्मविधिप्रकरणे-२३-२६*0 अभिधानराजेन्द्रकोषे 'सूरि' शब्दे-१-४*0 पञ्चवस्तौ-१३१९* विचारसारे-२२९ गाथासहस्याम्-५१७
देसकुलजाइरूवी० ।।१४८।। - जियपरिसो जियनिद्दो० ।।१४९।। - पंचविहे आयारे जुत्तो० ।।१५०।। → 'ससमयपरसमयविऊ० ।।१५१।। -
बूढो गणहरसद्दो० ।।१५२।। -

Page Navigation
1 ... 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512