Book Title: Darbarilal Kothiya Abhinandan Granth
Author(s): Jyoti Prasad Jain
Publisher: Darbarilal Kothiya Abhinandan Granth Prakashan Samiti

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Page 16
________________ ग्रन्थ शभकामनाओंके साथ ही उनके साथियों, सहयोगियों एवं पारिवारिक मित्रों, शिष्यों एवं उपकृत जनोंने उनके व्यक्तित्वके सम्बन्धमें जो कुछ लिखा है वह उनके विशाल व्यक्तित्वका ही चित्रण किया है । वह वास्तवमें एक विद्वानके लिए कम गौरवकी बात नहीं है । छोटी-छोटी कविताओंके माध्यमसे शिष्यों, विद्याथियों एवं सहदजनोंने जिस तरहसे अपने उद्गार प्रकट किये हैं उनसे ऐसा लगता है कि उनका जीवन कितना प्रशस्त, उपयोगी एवं सर्वजनहिताय एवं सर्वजनसुखाय बन चुका है। बनारस में रहते हए भी वे सारे देशके हैं और उनके स्वागतके किये सारा समाज मानों पलक-पावडे बिछाये रहता है । डॉ० कोठिया 'कर्मण्येवाधिकारस्तु' सिद्धान्तमें विश्वास रखने वाले हैं और इसी मंत्रके आधारपर वे सतत कार्यशील रहे हैं । उन्होंने अपने जीवन में उत्थान ही उत्थान देखा है। वे एक सामान्य अध्यापकसे लेकर हिन्दू विश्वविद्यालयमें उपाचार्य पद तक पहुँचे हैं । वे जहाँ भी रहे हैं अपने स्वाभिमानका अंश छोड़ा है तथा अपनी पूरी ड्यटीका अन्जाम दिया है। इनका जीवन 'वज्रादपि कठोराणि' न होकर 'मनि कुसुमादपि' है। यही कारण है कि आज हो नहीं, अपने आदिसे अन्तके जीवनमें लोकप्रिय बने रहे हैं। इन दो खण्डोंमें उनके जीवन एवं व्यक्तित्वके अतिरिक्त उनकी प्रमुख कृतियोंपर समालोचनात्मक समीक्षाएँ दी गयी हैं, जो विभिन्न विद्वानों द्वारा लिखी गयी हैं। विद्वानोंकी दृष्टि में उनकी कृतियाँ दार्शनिक जगत्में कितनी खरी उतरी हैं तथा जनदर्शनकी भूमिकामें उनका क्या स्थान है आदि कुछ प्रश्नोंको उभारा गया है और उन कृतियों के आधारपर उनका समाधान खोजा गया है। डॉ० कोठियाकी जिन कृतियों के समीक्षात्मक लेख दिये गये हैं उनके तथा उनके समीक्षक लेखकोंके नाम निम्न प्रकार हैं समीक्षक १. न्यायदीपिका :पं. नरेन्द्रकुमार भिसीकर २. आप्त परीक्षा : प्रो० उदयचन्द्र जैन ३. द्रव्यसंग्रह : डॉ० भागचन्द्र भास्कर ४. समाधिमरण दीपक : डॉ० कुसुमलता जैन ५. प्रमाणप्रमेयकलिका : प्रो० रंजनसूरिदेव ६. जैन तर्कशास्त्र में अनुमान-विचार : डॉ० दामोदर शास्त्री ७. जैनदर्शन और प्रमाणशास्त्र परिशीलन : डॉ० कस्तूरचन्द कासलीवाल ८. प्रमाणपरीक्षा : पं० रामनारायण त्रिपाठी . इस प्रकार समीक्षात्मक लेखोंमें डॉ० कोठियाकी दार्शनिक सूझ-बूझ एवं उनके सम्पादन स्तरपर अच्छा प्रकाश डाला गया है। साथ ही उनकी अधिकांश कृतियोंका परिचय भी पाठकोंको एक ही स्थानपर सरलतासे उपलब्ध करा दिया गया है । किसी विद्वान्के समस्त कृतित्वका एक ही स्थानपर परिचय और वह भी समीक्षात्मक, भविष्यके लिये उसको जानने-देखने एवं परखनेका सभीको सुन्दर अवसर मिल जाता है। शेष खण्ड अभिनन्दन-ग्रंथके शेष तीन खण्ड पूर्णतः उनके कृतित्वसे सम्बन्धित हैं। डाँ० कोठिया साहित्यिक जगत् में गत ४० वर्षोंसे लगातार कार्य कर रहे हैं । उनके विभिन्न पत्र-पत्रिकाओंमें पचासों खोजपूर्ण निबन्ध प्रकाशित हो चुके हैं । सेमिनारों, सम्मेलनों एवं अन्य समारोहोंमें उन्होंने कितने ही शोधपत्रों (शोधनिबन्धों) का वाचन किया है। लेकिन वे सब इधर-उधर पत्र-पत्रिकाओंके पृष्ठोंमें अथवा सेमिनारोंकी रिपोर्टोंमें बिखरे पड़े हैं। ऐसे निबन्धोंका संग्रह जहां एक ओर आवश्यक है वहाँ उनका संकलन करना भी एक खोजका विषय है। वैसे तो डॉ० कोठियाके अबतक करीब करीब २०० लेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओंमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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