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कर्मठ व्यक्तित्व .श्री ताराचन्द्र प्रेमी, फिरोजपुरझिरका
श्रद्धय, कोठियाजीको मैं बचपनसे ही जानता हूँ। उनके व्यक्तित्व की परिभाषा शब्दोंमें नहीं कर पाऊँगा। एक अजीब-सी मिठास, अपनत्व भरा सम्बोधन एवं तत्त्वज्ञानके निर्झरसा उन्हें निरन्तर बहते देखा है । सादगी, सरलता और सौम्यता उन्हें जन्मसे ही प्राप्त हुई है। श्री कोठियाजीको देखकर कभी-कभी यह शेर याद आता है- किसी राह रोको खबर ये न होगी
कि इन्सान तनहा भी एक कारवां है। ____ मैं उनकी दीर्घायुके लिए प्रार्थना करता हूँ। उनके द्वारा स्थान-स्थानपर समाज-सेवाका रचनात्मक इतिहास संजोया गया है। उनकी अभिव्यक्ति, ग्रन्थोंके रूपमें समाजकी महान उपलब्धि है। हार्दिक-सन्देश .श्री शिशुपाल पार्श्वनाथ शास्त्री, मैसूर
दरबारमें ये ज्ञानियोंके लाडले हो लाल बने । नाम अपना अर्थपूर्ण बना लिया जग सामने । न्यायके अरु धर्मके ये ग्रन्थकार बड़े बने।
प्यारसे मैं दे रहा है धन्यवाद सदा इन्हें॥ डॉ० कोठियाजी मूडबिद्री आये हुए थे, इनसे मिलनेका अवसर मुझे मिला था । कोठियाजी धर्म और न्यायशास्त्र के पहुँचे हुए विद्वान् ही नहीं, अपितु विनम्र स्वभावके मिलनसार भी हैं ।
मेरी हार्दिक कामना है कि डॉ० कोठियाजी स्वस्थ एवं दीर्घायु बनें । और इनसे समाजको इतोप्यतिशय सेवायें प्राप्त हों। समाजके मार्गदर्शक •पं० शिखरचन्द्र जैन प्रतिष्ठाचार्य, भिण्ड
संसारमें अनेक प्राणी जन्म लेकर मरणको प्राप्त होते है, यह सत्य सिद्धांत है किन्तु कुछ ऐसे भी व्यक्ति होते हैं जो समाजकी, राष्ट्रकी, धर्मकी सेवा करके अपना जीवन तो सफल करते ही हैं किन्त समाज एवं धर्म तथा राष्ट्रका कल्याण भी कर जाते हैं। वर्तमानमें पं० श्री दरबारीलालजी कोठिया न्यायाचार्य वास्तवमें कोठिया ही हैं, जिनके हृदयमें महान ज्ञानके कोठे भरे हुए हैं और जिन्होंने जैन समाजकी बहत सेवायें की हैं । कोठियाजीसे मेरा मिलन अयोध्या, देहली, वाराणसी कोनी, फतेहपुर, बाराबंकी आदि अनेक पंचकल्याणक-प्रतिष्ठाओंमें हआ है और मैंने कोठियाजीको बहुत-बहुत निकटसे देखा है। कोठियाजी विद्वान तो हैं ही। मगर विद्वत्ताके साथ आप श्रद्धा यानी देव, निर्ग्रन्थ गुरु और जिनागमके प्रति प्रगाढ़ श्रद्धावान् हैं । आज वर्तमानमें बहुतसे विद्वान् बेतरीके लोटेकी तरह लुढ़क चुके हैं किन्तु कोठियाजीकी श्रद्धा सुमेरुकी तरह अचल है । ज्ञानकी और श्रद्धानकी प्रतिष्ठा चारित्र में ही निहित है सो कोठियाजीके जीवन में सादाजीवन उच्च विचार है । चारित्रका पालन भी कोठियाजीके जीवनका अंग है, जो विद्वानोंके लिए स्वयं के कल्याणका मार्ग है । स्व-परकल्याण वही विद्वान कर सकता है जो विद्वत्ताके साथ-साथ चारित्रका पालन करने में तत्पर होगा, कोठियाजीमें ये सभी बाते मैंने निकटसे देखीं । ऐसे ज्ञानवान्, चारित्रवान्, सम्यक् श्रद्धावान् विद्वान के लिए अभिनन्दन करनेका कार्य महामंगलमय पावन कार्य हैं। मेरी श्रद्धासहित शुभ-कामनायें कोठियाजीको समर्पित है । भगवान् वीतराग प्रभुसे ये मंगलकामना है कि कोठियाजी दीर्घायु हों और इसी प्रकार समाजका मार्गदर्शन करते रहें।
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