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जैन विद्या के अप्रतिम मनीषी
• सेठ भगवानदास शोभलाल जैन, सागर
"करूँ क्या अभिनंदन उनका; जिनके कार्य महान् हैं ।
धन्य हैं जीवन उनका; जो स्वयं गुणोंकी खान हैं । " आदरणीय कोठियाजी जैन विद्याके अप्रतिम मनीषी । समाजको उनपर गर्व है । उनकी साहित्यिक एवं सामाजिक सेवायें सदैव अक्षुण्ण रहेंगी ।
प्राच्य विद्या, जिनवाणीके प्रचार-प्रसार जैन धर्म एवं जैन समाजके उन्नयन हेतु आपने अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया और अभी भी उसी साधना के साधक बने हैं ।
जो अपने धर्म एवं समाज तथा देश हितके
इस परिवर्तनशील संसारमें जीना उन्हींका सार्थक कार्यों में जीवनका सदुपयोग करते हैं ।
श्री भगवान महावीर से प्रार्थना है कि वह इन ज्ञान-चेतनाके पुंज, जैन धर्म एवं संस्कृति और समाज के सफल सचेतकको चिरायु प्रदान करें; ताकि युग-युग तक वह समाजका नेतृत्व करते रहें । मंगल कामनाओं सहित ।
जैनधर्मके मूर्धन्य विद्वान्
• श्री जयचन्द लोहाडे, महामन्त्री भा० दि० जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी, बम्बई
आदरणीय डाक्टर दरबारीलाल कोठियाजी जैन धर्मके एक उच्च कोटिके विद्वान् हैं और उसका प्रचार, प्रसार तथा धर्मानुसार आचरण में इनकी विशेष आस्था है । जैन धर्मके मूर्धन्य विद्वान् होनेके नाते - से धार्मिक तत्वोंका ध्यान कराने में इनकी शक्ति अद्भुत है। पंडितजीने समाज के लिए आज तक आजीवन सेवा अर्पित की है। ऐसे व्यक्तिका समाज द्वारा अभिनन्दन होना अत्यन्त आवश्यक है ।
मैं पंडितजीको दीर्घायु एवं उत्तम आरोग्य प्राप्त हो और उनके द्वारा समाज और धर्मकी सेवा सदा होती रहे, यही कामना करता हूँ ।
धर्मानुरागी साहित्यसेवी
• सिंघई धन्यकुमार जैन, कटनी
माननीय विद्वान् न्यायाचार्य डा० दरबारीलालजी कोठियाको उनकी सेवाओंके उपलक्ष में अभिनन्दनग्रन्थ भेंट किये जाने की योजनासे प्रसन्नता हुई। जैन जगतमें विद्वानोंका समादर बराबर होना चाहिये । यह परम्परा श्लाघनीय है । वे धर्मानुरागी साहित्य सेवी व्यक्ति हैं । उन्होंने जैन दर्शन एवं जैन इतिहासके वेत्ता श्री पं० जुगलकिशोरजी मुख्तार के साथ वीर सेवा मन्दिरमें अनेक वर्षों तक रहकर साहित्यकी प्रचुर सेवा की है । आजसे लगभग चार दशक पूर्व सरसावा (वीर सेवा मन्दिर) में सर्व प्रथम उनसे भेंट हुई थी । मैं देखता हूँ तबसे बराबर आजतक वे निष्ठा एवं लगन के साथजैन वाङ्ममयकी महती सेवा करते आ रहे हैं । अनेक संस्थाओं का उन्होंने दायित्व ग्रहण कर उनका सफलतापूर्वक संचालन किया है । समाज सेवाके क्षेत्र में भी वे पीछे नहीं रहे । अपने पाण्डित्य एवं सामाजिक सेवासे उन्होंने जैन संसार में अच्छी प्रतिष्ठा अर्जित कर अपना महत्त्वपूर्ण स्थान बनाया है । वे सरल, सौम्य व्यक्तित्व; गंभीर एवं प्रगल्भ प्रतिभा के धनी हैं । जैन समाजको उनसे अनेक अपेक्षायें हैं । वे स्वस्थ नीरोग रहें । दीर्घायु हों— ऐसी मेरी मंगल कामना है ।
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