Book Title: Dangvopakhyanam
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Page 3
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ला // नैमिषारण्यवासिनोऋषयःशौनकादयः नानाकथानकैस्तृप्तासूतंपप्र- श्री. | छुरादरात्॥४॥ ॥टीका॥ नैमिषारण्यने विशे रेहेनारा,एवा जे शौनकादिकऋषियो। | नाना प्रकारनां कथा नक् सांनलिने प्रप्त छे, मन ते जेनां एवा कोइक काले श्रादरबडे करिने सूत पुराणिक्ने पुछता हवा. // 4 // ॥श्लोक॥ ॥ऋषयउचु॥ श्रृणुसूतमहाबाहोसर्वशास्त्रविशारद // पाराशर्यप्रसादा. वन्यूननास्तितवानघ // 5 // टीका॥ ऋषियो बोलता हवा ; हे अनघ, हे पाप रहित हे बुद्धिमान सर्व शास्त्रने जाणनारा पराशरना प्रसादवडे करीने, कांइपण, न्यूनता नथी एवा, हे सुत अमारां जे वचन ते सांभळो. // 5 // ॥श्लोक // ब्रूहिब्रूहिमहाप्राज्ञडांगवस्यकथानकं // तृष्णानांपांडवानांचयुद्धजातं कथंवद॥६॥ ॥टीका॥हे प्रभो हे बुद्धिशालि श्रा समयने विशे तो डांगवर्नु कथानक संभळावो, हे प्रभो दृष्णि जे यादव अने पांडवो तेमने युद्ध शा कारणथी थयु ते / अभने सविस्तर समजावो.॥६॥ ॥श्लोक॥ ऋष्णमातापिताक्रष्णाक्रष्णःस्वजनबांधवा : विष्णुिितचगोत्रंचपांड--तिगोटारि... // हे प्रभो पांडवने तो हरी घणाज वाहाला हता, 1 For Private and Personal Use Only

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