Book Title: Dandak Prakarana tatha Jambudweep Sangrahani
Author(s): Jinhanssuri, Haribhadrasuri, Gajsarmuni, Chandulal Nanchand Shah
Publisher: Jain Shreyaskar Mandal Mahesana

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Page 196
________________ || दंडक प्रकरण मूल ॥ १० नमिउं चउवीसजिणे, तस्सुतवियारलेसदेसणओ, दंडगपएहिं ते च्चिय, थोसामि सुणेह भो भव्वा ॥ | १ || नेरइया असुराई, पुढवाई" बेइन्दियादओ' चेव; गव्भयतिरिर्यमणुस्सा, वंतर' जोइसिये वेमाणी' ॥२॥ संखित्तयरी उ इमा, सरीरमोगाणा य संघयेणा; सुन्ना सठाणे कसाये, लेसिंन्दिर्य दु समुग्धाया ॥३॥ १० ११ १२ १३ १४ १५ १६ १७ १८ दिट्ठी दंसण नाणे जोगुवओगोववाय चवण ठिई; १९ २० २१ २२ २३ २४ पज्जत्ति किमाहारे, सन्नि गइ आगई वेए ॥२४॥ चउ गव्भतिरिय वाउसु, मणुआणं पंच सेस तिसरीरा; धावरचउगे दुहओ, अंगुलअस खभागत ||५|| सव्वेसि पि जहन्ना, साहाविय अंगुलस्सऽसख सा; उक्कोस पणसयधणू, नेरइया सत्तहत्थ सुरा ॥ ६ ॥ गन्भतिरि सहस जोयण, वणस्सई अहियजोयणसहस्सं; नर तेईदि तिगाऊ बेइंदिय जोयणे बार ॥७॥ जोयणमेग चउरिंदि - देहमुच्चत्तणं सुए भणियं; वेव्वियदेह पुण, अंगुल संख समारंभ ||८|| देव नर अहियलक्ख, तिरियाणं नव य जोयणसया इं; गुणं तु नारयाणं, भणियं वेउव्वियसरीरं ॥९॥ अंतमुहुत्त निरए, मुहुत्त चत्तारि तिरिय-मणएसु; देवे अद्धमासो, उक्कोस विडवणा - कालो ॥१०॥ Jain Education International - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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