Book Title: Dandak Prakarana tatha Jambudweep Sangrahani
Author(s): Jinhanssuri, Haribhadrasuri, Gajsarmuni, Chandulal Nanchand Shah
Publisher: Jain Shreyaskar Mandal Mahesana

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Page 199
________________ पज्जत्तसखगभय-तिरियनरा निरयसत्तगे जति, निरयउवट्टा एएसु, उववज्जंति न सेसेसु ॥३५॥ पुढवी-आउ-वणस्सइ-मझे नारयविवज्जिया जीवा, सन्दे उववज्जति, निय-निय-कम्माणुमाणेणं ॥३६॥ पुढवाइ-दसपएसु, पुढवी-आऊ वणस्सई जति, पुढवाइदसपएहि य, तेउवाउसु उववाओ ॥३७॥ तेऊवाऊ-गमणं, पुढवीपमुहमि होइ पयनवगे, पुढवाइठाणदसगा, विगलाइतियं तहिं जति ॥३८॥ गमणागमणं गब्भय-तिरियाणं सयलजीवठाणेसु, सदस्थ जति मणुआ, तेऊवाऊहिं नो जति ॥३९॥ वेयतिय तिरिनरेसु, इत्थी पुरिसो य चउविहसरेस; थिरविगलनारएसु, नपुंसवेओ हवइ एगो ॥४०॥ पज्जमणु-बायरग्गी, वेमाणिय-भवण-निरय-वंतरिया; जोइस-चउ पणतिरिया, बेइंदि तेइंदि भू आऊ ॥४१॥ बाऊ, वणस्सइ च्चिय, अहिया अहिया कमेणिमे हुति; सम्वेवि इमे भावा, जिणा ! मए गंतसो पत्ता ॥४२॥ संपइ तुम्ह भत्तस्स, दंडगपयभमणभग्गहिययस्स, दंडतियविरय (इ) सुलह, लहु मम दितु मुक्खपय ॥४३॥ सिरि-जिणहसमुणीसर-रज्जे सिरि-धवलचदसीसेण; गल्मारेण लिहिया, एसा विन्नत्ति अप्पहिया ॥४४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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