Book Title: Dandak Prakarana tatha Jambudweep Sangrahani
Author(s): Jinhanssuri, Haribhadrasuri, Gajsarmuni, Chandulal Nanchand Shah
Publisher: Jain Shreyaskar Mandal Mahesana

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Page 201
________________ ७४ सोलस बक्खारगिरी, दो चित्त-विचित्त दो जमगा ॥११॥ दोसय कणय गिरीणं, चउ गयदंता य तह सुमेरु अ; छ वासहरा पिंडे, एगुणसत्तरि सया दुन्नी ॥१२॥ सोलसवक्खारेसु, चउ चउ कूडा य हुंति पत्तेयं; सोमणस गंधमायण, सत्तट्ट य रुप्पिमह हिमवे ॥१३॥ चउतीसवियड्ढेसु, विज्जुप्पह निसढनीलवंतेसु; तह मालवंत-सुरगिरि, नव नव कूडाई पत्तेयं ॥१४॥ हिमसिहरिसु इक्कारस, इय इगसटिगिरीसु कूडाण; एगत्ते सव्वधणं, सय-चउरो सत्तमट्टी य ॥१५॥ चउ-सत्त-अट्ठ-नवगे-गारसकूडे हिं गुणह जहसंख, सोलस-दुदु-गुणयालं, दुवे य सगसहि सय-चउरो ॥१६॥ चउतीसु विजएमुं, उसहकूडा अट्ट मेरुजबुम्मि; अट्ठ य देवकुराए, हरिकूड-हरिस्सहे सट्ठी ।।१७।। मागह वरदाम पभास तित्थ विजयेसु एरवयभरहे; चउतीसा तिहिं गुणिया, दुरुत्तरसयं तु तित्थाणं ॥१८॥ विज्जाहर अभिओगिय, सेढीओ दुन्नि दुन्नि वेयडढे; इय चउगुण चउतीसा, छत्तीससयं तु सेढीणं ॥१९।। चक्किजेअव्वाइ, विनयाई इत्थ हुति चउतीसा; महहह छप्पउमाई, कुरुसु दसगंति सोलसगं ॥२०॥ गंगा सिंधू रत्ता रत्तवई चउ नईओ पत्तेय; चउदसहि सहस्सेहि, समगं वच्चति जलहिम्मि ॥२१॥ एव अभितरिया, चउरो पुण अट्ठवीससहस्सेहिं; पुणरवि छप्पन्नेहि, सहस्सेहिं जति चउ सलिला ॥२२॥ कुरुमज्मे चउरासी-सहस्साई तह य विजयसोलससु; Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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