Book Title: Danchandrika
Author(s): Divakar, Gajanand Shastri
Publisher: Hariprasad Sharma

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Kalर्तिकीमाधीपौर्णिमातमहाफला ॥ पौर्णमासी सर्वासुमासर्तसहितासुच ॥ दत्तानामिहदानानांफलंशतय भवेत्-इति ॥ ॥ अथपुण्यदेशः ॥ ॥ मनुः ॥ दृषदतीसरस्वत्योर्देवनद्यार्यदंतरम् ॥ तदेवनिर्मितंदेश ४ ब्रह्मावर्तप्रचक्षते ॥ नारदः ॥ पुण्यदेशेषुसर्वेषुगृहेदेवालयादिषु ॥ यत्रसाधनसंपत्तिस्तत्रदानंसमाचरेत् ॥ भविष्यपुराणे ॥ वाराणसीकुरुक्षेत्रप्रयागंपुष्करंतथा ॥ गोकर्णनैमिषारण्यंसेतुश्रीपर्वतथा ॥ महाकालंत । थागंगामेतान्पुण्यतमान्विदुः ।। पाद्मे ॥ लिंगंवाप्रतिमावापिदृश्यतेयत्रकुत्रचित् ॥ तत्सर्वपुण्यतांयातिदा । नेषुचमहाफलम् इति ॥ एषुदानमतिप्रशस्तमितिहेमाद्रिः ॥ ॥ अथतीर्थेप्रतिग्रहनिषेधः ॥ पाझे ॥ नतीर्थेप्रतिगृह्णीयात्प्राण कंठगतैरपि-इति ॥ तीर्थतीरेक्षेत्रेच ॥ गंगाकृष्णागोदावरीणांतीरमाह विष्णुः ॥ गंगागोदावरीकृष्णातीरमाहुमहर्षयः ॥ उत्तरेनवगव्यूतिर्दक्षिणेयोजनत्रयम्-इति ॥ भविष्ये ॥ तीराद्ध व्यतिमात्रंतुपरितःक्षेत्रमुच्यते-इति ॥ गंगायांतुती पिनग्राह्यमित्यर्थः ॥ ब्राझे ॥ प्रवाहमवधिकृत्वा यावदस्तचतुष्टयम् ॥ तत्रनप्रतिगृह्णीयात्प्राणैःकंठगतैरपि-इति ॥ प्रवाहोगर्भः ॥ दानधर्मे ॥ भाद्रशुक्ल चतुर्दश्यांयावदाक्रमतेजलम् ॥ तावद्गर्भ विजानीयात्तदूवतीरमुच्यते-इति ॥ गर्भेप्रतिग्रहनिषेधःप्रसिद्धन । For Private and Personal Use Only

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