Book Title: Danchandrika
Author(s): Divakar, Gajanand Shastri
Publisher: Hariprasad Sharma

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Page 110
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लोकभोगानंतरंपरमपदप्राप्तिकामइतिसंकल्पेदानवाक्येचविशेषः ॥ अत्रसर्वगुर्वादिभ्यएवदेयम् ॥ तदल्पद्रव्य विषयम् ॥ बहुद्रव्येषुतुलापुरुषदानवदर्द्धचतुर्थाशोवागुरवेदत्त्वाऽन्यविप्रेभ्योदेयमितिहेमाद्रिः ॥ इतिसुवर्णाचल । दानं ॥ अथतिलाचलदानम् ॥ पाये ॥ उत्तमोदशभिर्दोणैःपंचभिर्मध्यमोमतः ॥ त्रिभिःकनिष्ठोराजेंद्रतिली लःप्रकीर्तितः--इति ॥ वृक्षविष्कंभादितसर्वपूर्ववत् ॥ मंत्रास्तु ॥ यस्मान्मधुवनेविष्णोदेहस्वेदसमु । वाः ॥ तिला कुशाश्चमाषाश्चतस्माच्छन्नोभवत्विह ॥ हव्यकव्येषुयस्माञ्चतिलैरेवाभिरक्षणम् ॥ भी वादुद्धरशैलेंद्रतिलाचलनमोस्तुते ॥ दानवाक्यंत । अयेत्यादि० सकलपापक्षयदीर्घायुष्यपुत्रपौत्रस IN मन्वितभोगानंतरपितृदेवगंधर्वलोकपूज्यमानत्वपूर्वकयुलोकगमनानंतरमक्षय्यवैष्णवपदप्राप्तिकामइतिसंकल्पेदा । नवाक्येचविशेषोऽन्यत्सर्वपूर्ववत् ॥ इतितिलाचलदानम् ॥ ॥अथार्योदयवतेतिलपर्वतदानम् ॥ स्का । दे ॥ पूर्वाह्नसंगमेस्नात्वाशुचिर्भूत्वासमाहितः ॥ सर्वपापविशुद्ध्यर्थेनियमस्थाभवेन्नरः ॥ नियममंत्र - स्तु ॥ त्रिदेवत्यवतंदेवाःकरिष्येभुक्तिमुक्तिदम् ॥ भवंतुसन्निधौमेऽद्यत्रयोदेवास्त्रयोऽग्नयः-इति ॥ तथा ।।। बह्मविष्णुमहेशानांसौवर्णीःपलसंख्यया ॥ प्रतिमास्तुप्रकर्तव्यास्तदर्धेनदिजोत्तम ॥ साग्रंशतत्रयशंभो । For Private and Personal Use Only

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