Book Title: Danchandrika
Author(s): Divakar, Gajanand Shastri
Publisher: Hariprasad Sharma

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Page 109
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobairthorg Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie दान | शभिर्भारेमध्यम पंचभिर्मतः ॥ त्रिभि रेः कनिष्ठः स्यात्नदर्धनाल्पवित्तवान ॥ तुलास्त्रियांपलशतंभारः चंद्रि० ५०॥ स्यादिशतिस्तुलाः-इत्यमरः ॥ विधिस्तुपूर्ववत् ।। प्रार्थनामंत्रास्तु ॥ यथादेवेषुविश्वात्माप्रवरश्चजनार्दनः ॥ सामवेदस्तुवेदानांमहादेवस्तुयोगिनाम् ॥ प्रणवःसर्वमंत्राणांनारीणांपार्वतीयथा ॥ तथारसानांप्रवर सदैवे । क्षुरसोमतः ॥ ममतस्मात्परांलक्ष्मींददस्वगुडसर्वदा ॥ यस्मात्सौभाग्यदायिन्याभ्रातात्वंगुडपर्वत ॥ नि वासश्चापिपार्वत्यास्तस्मान्मांपाहिसर्वदा ॥ दानवाक्यंतु ॥ अद्येत्यादि सकलपापक्षयोत्तरगंधर्वपूज्यमा|५| त्वपूर्वकल्पशतावधिगौरीलोकप्रात्यनंतरसपत्नापराजितायुरारोग्यपूर्वकसनदीपाधिपतित्वकाम ईश्वरप्रीतिका Jeel /मोवेतिसंकल्पेदानेचविशेषोऽन्यत्सर्वपूर्ववदिति ॥ इतिगुडाचलदानम् ॥ ॥ अथसुवर्णाचलदानम् ।। पाद्ये ॥ |उत्तम पलसाहस्रोमध्यम-पंचभिःशतैः ॥ तदर्थेनाधमस्तददल्पवित्तोऽपिशक्तितः ॥ अल्पवित्तःपलादू । कुर्यादिति । धान्यपर्वतवदिधानम् ॥ पर्वतंसंपूज्यप्रार्थयेत् ॥ मंत्रौतु ॥ नमस्तेब्रह्मगर्भायब्रह्मबीजायवै . नमः ॥ यस्मादनंतफलदस्तस्मात्पाहिशिलोच्चय ॥ यस्मादरपत्यंत्वंयस्मात्तेजोजगत्पते ॥ हेमपर्वतरूपे ॥५०॥ Mणतस्मात्पाहिसदामम-इति ॥ दानवाक्यम् ॥ अद्येत्यादि०सकलपापक्षयोत्तरशतकल्पावधिआनंदकारकब्रह्म । For Private and Personal Use Only

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