Book Title: Danchandrika
Author(s): Divakar, Gajanand Shastri
Publisher: Hariprasad Sharma

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Page 121
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobairth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandir दान | र्तिदानंकरिष्ये इतिसंकल्प्यगोमयोपलिनेदिचतुरेकद्रोणतंदुलराशौकुबेरपतिमांराजाधिराजेतिसंपूज्य तत चंद्रि० ॥५६॥ आग्नेय्यांस्वगृह्यविधिनाऽगिप्रतिष्ठाप्य समिदाज्यचरुभिः प्रत्येकमष्टोत्तरशतंराजाधिराजायेतिमंत्रणहुत्वा । तत्संख्ययावृताक्ततिलैातिभिश्चहुत्वाकुबेरमूर्तिदद्यात् ॥ अद्येत्यादि० ममेह जन्मनि जन्मांतरे वा कृतदानविनजनिततीवदारिद्रयविनाशपूर्वकं यथेप्सितधनप्राप्त्यर्थंच इमांकुबेरमूर्तिपुष्पकविमानस्थांपाची । योः पद्मशंखाकारयुतांसोपस्करां गोत्रायशर्मणे सुपूजितायतुभ्यमहसंप्रददे नममेति ॥ मंत्रस्तु ॥ उN तराशापतेदेव कुबेरनरवाहन ॥ पद्मशंखनिधीनांत्वं पतिः श्रीकंठवल्लभः ॥ दानविघ्नान्मयाप्राप्तंदारिन यंममदुःखदम् ॥ तत्सर्वतवदानेनपापमाशुविनाशय-इति ॥ देवद्रव्यकृतीयांशचतुर्थीशंवासुवर्णदक्षिणां दद्यादितिविशेषः ॥ ततोब्राह्मणभोजनंसंकल्प्य भूयसींदक्षिणांदद्यात् ॥ इतिदारिद्रयहरंकुबेरमर्तिदानम् ॥ अथउमामहेश्वरमूर्तिदानम् ॥ भविष्ये ॥ अद्येत्यादि० सशैलवनकाननसप्तसागरपृथ्वीदानसमफलावाप्त HIN॥५६॥ ये इमामुमामहेश्वरमूर्तिसालंकृतांसोपस्करांसोपकरणांगोत्रायशर्मणेतुभ्यमहसंप्रददे नममेति ॥ मंत्रस्तु ॥ शिवशक्त्यात्मकंयस्माज्जगदेतच्चराचरम् ॥ तवदानेनमेवश्यापृथिवीस्यात्सुनिश्चला ॥ सुवर्णदक्षिणां । 100 - - For Private and Personal Use Only

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