Book Title: Danchandrika
Author(s): Divakar, Gajanand Shastri
Publisher: Hariprasad Sharma
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सस्यानिपक्कान्नमपिचद्दिज ॥ संज्ञेयाः सर्वगंधाश्चगांधव वैविचक्षणैः ॥ विद्यात्राह्मीविनिर्दिष्टा विद्योपकरणा निच ॥ सारस्वतानिज्ञेयानिपुस्तकादीनिपंडितैः ॥ सर्वेषां शिल्पभांडानांविश्वकर्मातुदेवता ॥ द्रुमाणामथ पुष्पाणांशाकैर्हरितकैस्तथा ॥ फलानामथसर्वेषांतथाज्ञेयोवनस्पतिः ॥ मत्स्यमांसे विनिर्दिष्टेप्राजापत्येतथैव च ॥ छत्रकृष्णाजिनंशय्यांरथमासनमेवच ॥ उपानहौतथापायच्चान्यत्प्राणवर्जितम् ॥ सर्वचांगिरसत्वेन प्रतिगृह्णीत मानवः । शरोपयोगियत्संवैशस्त्रचर्मध्वजादिकम् ॥ नृपोपकरणंसर्वविज्ञेयंसर्वदैवतम् ॥ गृहंतुश कदैवत्यंयदनुक्तंद्विजोत्तमाः ॥ विज्ञेयं विष्णुदैवत्यं सर्वदाद्विजसत्तमाः - इति ॥ ॥ अथप्रतिग्रहस्थानानि ॥ गृह्य परिशिष्टे ॥ प्रतिगृह्णीतगां पुच्छे कर्णेवाहस्तिनंकरे ॥ मर्भिदासीमजचैव पृष्ठे ऽश्वतरगर्दभौ || अश्वकर्णेसटा यांवाअन्नमुद्दिश्यधारयेत् ॥ शय्यासनं गृहं क्षेत्रं संस्पृश्यादायकांचनम् ॥ उष्ट्रं चककुदिस्पृष्ट्वामृगांश्श्रमहिषादि कान || गोधामश्वविधानेनपक्षे संस्पृश्यपक्षिणः ॥ छत्रदंडेतरून्मूलफलं संगृह्यगौरवात् ॥ प्रगृह्योपानहोऽ मत्रंवासयेत्प्रतिमुच्यवै ॥ अमपात्रम् || वासस्तथासमादाय कन्यांशीर्षेऽथवाकरे || कन्यायादक्षिणांसमभि स्पृशेदित्यर्थः ॥ रतिभार्योऽपरपूर्वाप्रतिगृह्णीतचाक्षताम् ॥ पुत्रमुत्संगमारोप्यप्रतिगृह्णीतदत्तकम् ॥ रथं रथमुखे
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