Book Title: Chintamani Parshwanath Diwakar Chitrakatha 04
Author(s): Vijaymuni, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 2
________________ चिन्तामणि पार्श्वनाथ जैन धर्म के तेईसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ एक ऐतिहासिक महापुरुष थे। आपका समय ईसा पूर्व नौवी-दसवीं शताब्दी माना जाता है। भगवान महावीर से 250 वर्ष पूर्व भगवान पार्श्वनाथ ने धर्म तीर्थ का प्रवर्तन किया था और 70 वर्ष तक भारत के विभिन्न प्रदेशों में अहिंसा, सत्य अस्तेय एवं अपरिग्रह रूप चातुर्याम धर्म का उपदेश दिया। बौन्दुपिटकों में अनेक स्थानों पर भगवान पार्श्वनाथ के चातुर्याम धर्म की चर्चा है। उस समय पूर्वोत्तर भारत का अनेक राजवंशों पर भगवान पार्श्वनाथ के उपदेशों का व्यापक प्रभाव था। दक्षिण भारत के नाग राजतंत्र आदि के इष्टदेव भी पार्श्वनाथ थे। भगवान पार्श्वनाथ अत्यन्त करुणाशील योगी पुरुष थे। ध्यान-योग पर उनका विशेष बल था। निर्वाण के पश्चात् भी भारत के विभिन्न अंचलों में उनके लाखों श्रद्धालु अनुयायी विद्यमान थे। भगवान पार्श्वनाथ ने जिस जलते नाग-युगल को णमोकार मंत्र सुनाकर उनका उद्धार किया था, वह धरणेन्द्र पद्मावती के रूप में देव होकर भगवान पार्श्वनाथ के भक्त रूप में विख्यात हुए और समय-समय पर पार्श्वनाथ के भक्तों की सहायता करके जिन शासन की प्रभावना करने में सहायक बने। यही कारण है कि भारत के लाखों-करोड़ों धार्मिक व्यक्ति भगवान पार्श्वनाथ की उपासना/आराधना करते हुए भय-विघ्न-बाधाओं से मुक्त होकर मन इच्छित प्राप्त करने में सफल होते हैं। भगवान पार्श्वनाथ का नामस्मरण ही मन चिंतित कार्य सम्पन्न करने में चिंतामणि रत्न के समान होने के कारण उनका चिंतामणि पार्श्वनाथ नाम अत्यन्त श्रद्धा विश्वास पूर्वक स्मरण किया जाता है। प्रस्तुत पुस्तक में भगवान पार्श्वनाथ के पूर्व जन्मों की कथा लेते हुए वर्तमान तीर्थंकर जीवन तक की घटनाएँ लिखी गई हैं। अपने प्रत्येक जन्म में वे क्षमा और करुणा के महासागर से प्रतीत होते हैं। प्रतिस्पर्धी कमठ क्रोध का प्रतीक है तो भगवान पार्श्वनाथ क्षमा के अवतार। क्षमा और करुणा के माध्यम से ही पार्श्वनाथ ने मनुष्य को शान्त, तनाव रहित आनन्दमय जीवन जीने की शैली सिखाई है। लेखक श्री विजयमुनि शास्त्री संपाद श्रीचन्द सुराना 'सरस' संयोजन एवं व्यवस्था / संजय सुराना चित्रण डा. त्रिलोक शर्मा, डा. प्रदीप शर्मा दिवाकर प्रकाशन ए-७, अवागढ़ हाउस, एम. जी. रोड, आगरा-२८२००२ प्रकाशक श्री श्वेताम्बर जैन श्री संघ भोमिया जी भवन, मधुबन, पो. शिखरजी, जिला-गिरीडिह (बिहार) (c) सर्वाधिकार प्रकाशकाधीन राजेश सुराना द्वारा दिवाकर प्रकाशन, ए-७, अवागढ़ हाउस, एम. जी. रोड, आगरा-२८२००२ दूरभाष : (0562) 54328,51789 के लिये प्रकाशित। Education internationa www ainelibrary.org

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