Book Title: Chatusharan Prakirnakam
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 27
________________ २२ खीरासवमहुआसव - संभिन्नस्सोअकुट्ठवुडी अ । चारणवे उग्विषयानुसारिणो साहुणो सरणं ॥ ३४ ॥ उज्झअवय (इ) र विरोहा निच्चमदोहा पसंतमुहसीहा | अभिम(ग) धगुणसंदोहा हयमोहा साहुणो सरणं |३५| खंडिअसिणेहदामा अकामधामा निकामसुहकामा | सुपुरिसमणाभिरामा आयारामा मुणी सरणं ॥ ३६ ॥ मिल्हिअविसयकसाया उज्झिअघरघर णिसंग सुहसाया । अकलिअहरिसविसाया साहू सरणं गयपमाया (विहुअसोआ) ॥ ३७ ॥ हिंसाइदोससुन्ना कयकारुण्णा सयंभुरुषपण्णा (पुण्णा) (भरुपपन्ना) । अजरामर पह (बहु) खुण्णा साहू सरणं सुकयपुण्णा |३८| कामविडंबनचुक्का कलिमलमुक्का विवि (मु)क्कचोरिका । पावरयसुरयरिका साहू गुणरयणच (वि) चिक्का ॥ ३९ ॥ साहुत्त सुद्विआ जं आयरिआई तओ अ ते साहू | साहुभणिए (गहणे)ण गहिआ तम्हा ते साहुणो सरणं ॥ ४० 'सिद्ध'त्ति, नया-नैगमादयस्तैरुपलक्षितं यद्ब्रह्म-श्रुतज्ञानं द्वादशाङ्गरूपं 'नयभङ्गप्रमाणगमगहन' मिति वचनातस्य नयब्रह्मणो ये हेतवः - कारणभूताः साधुगुणा - विनयादयो, विनयादिगुणसम्पन्नस्यैव श्रुतावाप्तेः तेषु नयब्रह्महेतुषु

Loading...

Page Navigation
1 ... 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56