Book Title: Chatusharan Prakirnakam
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 55
________________ चार शरण : राग-धनाश्री वसंत (जिनवर परम दयाल) चार शरण सुखकार भविया, चार शरण सुखकार. प्रथम शरण अरिहंत प्रभुनु, बार गुणे हितकार....भविया० बीजु शरण सिद्ध बुद्ध महंतनु, अजरामर पदधार....मविया० त्रीजु शरण साधु साधु गुरुनु, करुणा रस भण्डार....भविया० चोथु शरण शुभ जैनधरमनु, दुःख टाली सुख दातार....भविया० लाख चोराशी हुँ जीव खमावु, वैर न राखु लगार....मविया० शुभ करणी सवि भलि हुं मानु, पापने निंदु अपार...भविया० मन वचन काये जे पाप कर्यां में, मिथ्या थाओ आवार....मविया० मात पिता भाई नारीने छोडी, कयारे थईशु प्रणगार....मविया० नवकार मंत्रनु ध्यान धरता, पामीए भवजल पार....भविया० छोडी लोलुपता अवसर पामी, अणसण करीए श्रीकार....भविया० ओचितु जो मुज मरण होवे, तो सवि त्याग निरधार....भविया० जन्म जरा मरणादिके भरियो, आ संसार असार....मविया० कयाँ करम समभावे भोगवीए, कोई न राखणहार....भविया० ते माटे शरण ए चित्तमां पारु, शमामृत देनार... मविया

Loading...

Page Navigation
1 ... 53 54 55 56