Book Title: Chando Ratnamala
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushilsuri Jain Gyanmandir

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Page 9
________________ भूमिका भारत देश में बहुत प्राचीन काल से कविता पद्य में ही लिखी जाती रही है। इस दीर्घकालीन घनिष्ठ सम्बन्ध के कारण पद्य और कविता को एक-दूसरे का पर्याय समझने का भ्रम भी हया है। कविता के लिए जो विशेषताएँ आवश्यक हैं उनके होने पर गद्य में कथित उक्ति भी कवित्वपूर्ण कही जा सकती है फिर भी पद्यबद्ध होने से उसमें अधिक सौन्दर्य समाविष्ट होता है, यह निश्चित है। जब मात्रा, वर्णसंख्या, विराम, गति या लय तथा तुक आदि के नियमों से युक्त रचना होती है तब उसे पद्य कहते हैं। जिस शास्त्र में पद्य-रचना के नियमों, पद्यों के नाम, लक्षण, भेद आदि के सम्बन्ध में विचार किया जाता है, उसे छन्दशास्त्र कहते हैं। पद्य और छन्द समानार्थक हैं। संस्कृत में छन्दशास्त्र के प्रथम रचयिता पिंगलाचार्य माने जाते हैं। उनका 'पिङ्गल छन्दःशास्त्र' ही इस विषय का पहला ग्रन्थ है। अतः इस शास्त्र के प्रवर्तक के नाम पर इसे पिंगलशास्त्र भी कहते हैं। पिंगलकृत छन्दःशास्त्र 'सूत्र' रूप में लिखा गया है, उसमें आठ अध्याय हैं। उसके आधार पर 'अग्निपुराण' में इस विषय का विस्तार के साथ वर्णन किया

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