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उदाहरण भी प्रसिद्ध ही चुने गए हैं। कहीं-कहीं प्राचार्यश्री ने स्वयं भी उदाहरणस्वरूप छन्दरचना की है। एक से अधिक उदाहरण देकर और तालिकायें बनाकर आचार्यश्री ने विषय की दुरुहता को कम किया है। इस प्रकार इस लघुकृति से प्राचार्यश्री के त्रिविधरूप काव्यकार, शास्त्रकार और व्याख्याकार प्रकट होते हैं।
लोकमंगल की पुनीत भावना से साहित्य-साधना में रत आचार्यश्री स्वस्थ एवं नीरोग रह कर दीर्घजीवी हों और उनकी यशस्वी लेखनी का अवदान साहित्य-समाराधकों को अनवरत प्राप्त होता रहे, यही मंगल कामना है। इति शुभम्
रक्षाबन्धन, दि. २७-८-८८
-डा. चेतनप्रकाश पाटनी
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