Book Title: Chando Ratnamala
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushilsuri Jain Gyanmandir

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Page 10
________________ गया है। आगे चलकर अनेक ग्रन्थों में इस विषय का उत्तरोत्तर अधिक विस्तार से विवेचन किया गया है जिनमें क्षेमेन्द्र कृत 'सुवृत्ततिलक', भट्ट केदार कृत 'वृत्तरत्नाकर' और गंगादास कृत 'छन्दोमञ्जरी' अतिप्रसिद्ध ग्रन्थ हैं। जैनाचार्य कलिकालसर्वज्ञ श्रीमद् हेमचन्द्रसूरीश्वरजी का 'छन्दोनुशासनम्' भी इस विषय का उल्लेखनीय ग्रन्थ है। वयोवृद्ध जैन प्राचार्यश्री विजयसुशीलसूरिजी म. सिद्धहस्त कवि और सरलमना, अभीक्ष्णज्ञानोपयोगी साहित्य रसिक साधु हैं। आपकी लेखनी से शताधिक रचनाओं का प्रणयन हुआ है और इस वृद्धावस्था में भी उस लेखनी को अभी विराम नहीं मिला है। अपने शुभोपयोग निमित्त आप सदैव अध्ययन-मनन और लेखन कर्म में प्रवृत्त रहते हैं। छन्दशास्त्र के अध्येताओं के लिए आपने इस लघुकाय 'छन्दोरत्नमाला' पुस्तक का निर्माण किया है जो प्रारम्भिक अध्येताओं को एतद्विषयक सम्पूर्ण प्रामाणिक जानकारी प्रदान करती है। छन्दोरत्नमाला तीन स्तबकों से ग्रथित है। प्रथम स्तबक में छन्द के लक्षण, अर्थ, भेद, लघुगुरुवर्णज्ञान, मात्राज्ञान, गणज्ञान, यति-गतिज्ञान आदि का संक्षिप्त किन्तु यथेष्ट परिचय दिया गया है। द्वितीय स्तबक में मात्रिक छन्दों का विवेचन है और तृतीय स्तबक में वर्णिक छन्दों का । काव्यशास्त्र के प्रारम्भिक अध्येताओं के लिए इतने ही छन्दों का ज्ञान अपेक्षित है, ऐसा कहना उन्हें भ्रम में डालना होगा। पर इतना अवश्य है कि ये कतिपय उन छन्दों में हैं जिनमें हमारे काव्य-वाङ्मय का अधिकांश उपनिबद्ध हुआ है। छन्दों के लक्षणों के लिए प्राचार्यश्री ने प्रामाणिक संस्कृत ग्रन्थों को आधार बनाया है,

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