Book Title: Chalte Phirte Siddho se Guru
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 2
________________ प्रथम संस्करण (५ अगस्त २००७) आध्यात्मिक शिक्षण शिविर, जयपुर मूल्य: पन्द्रह रुपए मुद्रक : प्रिन्ट 'ओ' लैण्ड बाईस गोदाम, जयपुर : ५ हजार मुनि दीक्षा से पूर्व एवं पश्चात् पठनीय गूढतम सिद्धान्तों को कथा शैली में पिरो देना एक कठिन काम है, परन्तु लेखक महोदय ने पाठकों के लिए यह सुगम और सुलभ कर दी है। इस पुस्तक में भी पूर्व पुस्तकों की भांति वही आकर्षण पूर्णतया विद्यमान है। मैंने इसे आद्योपांत पढा है। इसके २२ परिषह एवं १२ भावना के प्रकरण अत्यंत रोचक बन पड़े हैं, जो मुनि दीक्षा से पूर्व एवं पश्चात् अवश्य पठनीय हैं। इस तात्त्विक पुस्तक में मुनिराजों के प्रति समाज में कितना आकर्षण है एवं उनके माध्यम से कितनी निर्दोष धर्म प्रभावना होती है, इसका सुन्दर चित्रण देखने को मिलता है। आबाल, वृद्ध इसका लाभ अवश्य लेंगे, श्रीजिनशासन की प्रभावना एवं पूज्य गुरुदेवश्री के यश का संवहन युगों-युगों तक करते रहने में आप अवश्य सफल रहेंगे। - ब्र. सुमतप्रकाश जैन एम कॉम, पूर्व प्रोफेसर, हमीदिया कॉलेज, भोपाल निदेशक, नन्दीश्वर विद्यालय खनियांधाना (म. प्र. ) 2 अन्तर्भावना निर्ग्रन्थ मुनिराज का अन्तर्बाह्य जीवन इतना पवित्र होता है कि उनके दर्शन और स्मरणमात्र से हमारे पापभावों का प्रक्षालन हो जाता है। मुनिराज क्षणक्षण में अन्तर्मुख होकर चिदानन्द का रसपान किया करते हैं, उनके जीवन का अनुकरण करके हम भी गृह जंजाल से मुक्त होकर उन्हीं की भांति मुनिधर्म धारण कर मुक्तिपथ के पथिक बनें ऐसी हमारी हार्दिक भावना है। प्रस्तुत कृति के माध्यम से हम मुनिधर्म के स्वरूप को हृदयंगम कर उसे निर्दोषरूप से जीवन में अपनायें। यही इस कृति को लिखने का पावन उद्देश्य है। हमें भी तो संसार के अनन्त दुःखों से मुक्त होना है और हम यह भलीभांति जानते हैं कि मुनिधर्म धारण किए बिना मुक्ति नहीं मिलेगी । अतः मुनि जीवन को न केवल समझना होगा, उसे अपनाना भी होगा। एतदर्थ अपना मानस अभी से बनाना है, तभी तो यह पुण्य अवसर कभी न कभी तो मिलेगा ही । मुनि जीवन यद्यपि ऊपर से कठोर लगता है, पर यह कष्टदायी नहीं है। इसमें जो सुखद अनुभूति होती है, ऐसी अन्यत्र कहीं उपलब्ध नहीं हो सकती । आत्मार्थी जीवों के चित्त में मुनि धर्म धारण करने की भावना निरंतर उछलती है। भले ही अभी हम सामर्थ्य हीन होने से उस दशा को प्राप्त न कर पायें, तो भी भावना में तो निरन्तर यही बात बनी रहती है और मानवीय मनोविज्ञान भी यह है कि जिसे जिस काम को करने की भावना होती है, वह उस संदर्भ को सम्पूर्ण विस्तार से जानना चाहता है। मुनि जीवन अपनानेवाले के हृदय में मुनि जीवन के अन्तर्बाह्य पक्ष को सावधानी पूर्वक समझने का उत्साह होता है। आशा है पाठकगण मेरी पवित्र अन्तर्भावनाओं का सम्मान करते हुए इसे मात्र स्वान्तः सुखाय ही पढ़ेंगे, इस कृति को दूसरों के लिए कसौटी न बनायें। और इसी पवित्र भावना से दूसरों को पढ़ने की प्रेरणा देकर मेरे प्रयास को सफल करें ऐसा मेरा विनम्र निवेदन है। - रतनचन्द भारिल्ल

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