Book Title: Chaiyavandanmahabhasam
Author(s): Shantisuri
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
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॥ अहम् ॥ - मायाम्मोनिषिधीविजयानन्दरिपादपोम्यो नमः।
सिरिसंतिसूरिविरह
चेइयवंदणमहाभासं।
तीर्थकुराः
पणमह पणमंतसुरा-सुरिंदमणिमउडघट्टपयपीढं। अषमः सिप्प-कला-गम-सिवमग्गदेसयं जिणवरं उसह॥१॥ प्रणमत प्रणमत्सुरा-ऽसुरेन्द्रमणिमुकुटघृष्टपदपीठम् । शिल्प-कला-ऽऽगम-शिवमार्गदेशकं जिनवरमृषमम् ॥१॥ संगमयामरगयमाणमाणमायंगमद्दणमयंदं । वीरः पणमह वीरं तित्थस्स नायगं वट्टमाणस्स ॥ २॥ संगमकाऽमरगताऽमानमानमातङ्गमर्दनमृगेन्द्रम् । प्रणमत वीरं तीर्थस्य नायकं वर्त्तमानस्य ॥ २॥ संसारगहिरसायरपडंतजंतूण तारणप्पवणे। तीया ऽणागय-संते, वंदे सो वि तित्थयरे ॥३॥ संसारगमीरसागरपतजन्तूनां तारणप्रवणान् । अतीवा-नागत-सतो वन्दे सर्वानपि तीर्थकरान् ॥ ३॥ जम्मुहमहदहाओ, दुवालसंगी महानई बूढा। गणधराः ते गणहरकुलगिरिणो, सके वंदामि भावेण ॥ ४॥ यन्मुखमहाद्रहाहादशाङ्गी महानदी व्यूढा । तान् गणघरकुलगिरीन् सर्वान् वन्दे भावेन ॥ ४ ॥ नमिऊण समणसंघ, संघायारं समासओ वुच्छं। प्रथामिधेयं बेइयवंदणविसयं, सुत्तायरणाऽणुसारेणं ॥५॥ संघश्च नत्वा श्रमणस समाचार समासतो वक्ष्ये ।। यवन्दनविषयं सूत्राऽऽधरणानुसारेण ॥ ५॥
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