Book Title: Chaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit Author(s): Devendrasuri Publisher: Unknown View full book textPage 2
________________ देववंदन जाय अर्थसहित. अर्थ : - ( वंदलिके के ) वंदनीयान् एटले बांदवा योग्य एवा जे ( सधे के० ) सर्वे श्रीतीर्थं करदेव अथवा श्री अरिहंतादिक ( स के०) सर्वे पांचे परमेष्ठी तेसने ( वंदित्तु के० ) वंदित्वा एटले वांदीने ( चिश्वंदणाइ के० ) चैत्यवंदनादिक ए टले चैत्यवंदन तथा आदिशब्दधी गुरु वंदन अने पञ्चरकाल पण लेवां ते रूप ( सुविधारं के० ) सुविचारं एटले रुमा विचारप्रत्यें ( बहु के ) घणा एवा जे (वित्ति के० ) वृत्ति, (आस के जाप्य अने ( चुसी के० ) चूर्णितादियुक्ति प्रमुख ग्रंथो तडूप ( सुयागु सारेण के ) श्रुतने अनुसारें करीने ( वुन्नामि के० ) कोश. परंतु महारी मतिकल्पनायें नहीं कहीश. एटले धर्मरुचि जीवोने पंचांगी सम्मत चैत्यवंदनादिकनो विधि कदीश. कारण के समकितनुं बीज तो शुद्ध देव, शुद्ध गुरु अने शुद्ध धर्मनुं स्वरूप जाणवुं, थने सदहवं बे ते माटे प्रथम अढार दोष रहित, नि कलंक एवा जे श्रीअरिहंत देव वे, ते शुद्ध देव बे. तेना स्थापनादिक चारे मिपा दांदवा योग्य २Page Navigation
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