Book Title: Chaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Author(s): Devendrasuri
Publisher: Unknown

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Page 11
________________ देववंदन नाष्य अर्थसहित. ११ निसिही-तिगं ॥ अग्ग-हारे मजे, तश्या चिश्-वंदणा-समए ॥ ७॥ अर्थः-जे सावध व्यापारनो मन, वचन अने कायायें करी निषेध करवो, तेने निसिही कहीये, ते एक पोताना (घर के) घरनां बीजी (जि लहर के) जिनघर ते देरासरना, त्रीजी (नि लपूआ के) श्रीजिनेश्वरनी पूजानां जे ( वावार के) व्यापार एटले एणना जे व्यापार तेने (चायके ) त्यागवाथकी (निसिहोतियं के०) नै बधिकीत्रिक थाय तेमां प्रथम निसिहि ते पो ताना घर, हाट, परिवारादिक संबंधी जे सावद्य व्यापार ते सर्व निवर्ताववा माटे श्रीजिनमंदिरने (अग्गद्दारे के०) अग्रक्षारें कहे. एटले देरासरनां मूल वारणे दरवाजामा पेसतांज कहे, पण इहां श्रीजिनघरने पूंजवा समारवा संबंधि तथा पूजा संबंधि सर्व व्यापार आदरे, तथा बीजी निसिदी ते जिनघर संबंधं व्यापारी नवत्तेवा रूप देरा सरनी (मऊ के० ) मध्य गन्नारामां पेसतां क

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