Book Title: Chaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Author(s): Devendrasuri
Publisher: Unknown
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१७ देववंदन नाप्य अर्थसहित. यन्नावणं के ] अवस्थात्रयनुं नाव, जाणवु, (चेव के ) निश्चें ॥
ही चार दिशिमांथी मात्र नगवान् ने दि शियें बेठेला होय, तेज एक दिशिनी सामुं जोवं, अने शेष (तिदिसिनिरस्काविरई के ) त्रण दि शिनी सन्मुख नोवामुं विरमण करवू, सातमी (पयनूमिपमऊणं के) पग मूकवानी नूमिर्नु प्रमाऊन ते (च के) वली (तिस्कुत्तो के) प्रण वार कर, आग्मी (वनातियं के०) वर्णा दिकना आलंबन त्रण कदेशे (च के) वल्ली नवमी मुद्दतियं के ) त्रण मुश कदेशे, दशमी (तिविहं के ) त्रण प्रकारे (च के) वलि (पणिहाणं के०) प्रणिधान कदेशे, जे त्रण बो लनो समुदाय तेने त्रिक कदीयें, ए दश त्रिकनां नाम कां ॥७॥
हवे प्रथम नितिही त्रण कये कये स्थानकें करवी ? ते कहे . . घर जिणहर-जिण-पूया, वावारच्चायन

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