Book Title: Bruhad Adhyatmik Path Sangraha Author(s): Abhaykumar Devlali Publisher: Kundkundswami Swadhyaya Mandir Trust Bhind View full book textPage 6
________________ प्रकाशकीय "यदर्चाभावेन प्रमुदितमनाः दर्दुर इह, क्षणादासीत् स्वर्गी गुणगणसमृद्धः सुखनिधि॥" पद्यसङ्केतित घटनानुसार मेढ़क को भगवान के दर्शन की भावना मात्र से लोक में पूज्य विशेष निधि का लाभ हुआ। तो जो हमारे आध्यात्मिक चिन्तन को पुष्ट करें, उन पाठों की महिमा भी अपूर्व है। साथ ही, भावना भवनाशिनी, भावना भववर्धिनी' - इस उक्ति के अनुसार वैराग्य/भोगों की भावना को मुक्ति/संसार का कारण कहा है। रुचिपूर्वक बारम्बार विचार(चिन्तवन) करना भावना है। सम्यक् भावनाओं का आधार भक्ति व तत्त्वज्ञान समन्वित पूजन-पाठ आदि हैं। पूजन साहित्य से जैन समाज अतिसमृद्ध है ही, परन्तु पाठ-साहित्य का भी एक वृहद संकलन समाज में हो -ऐसी भावना हमारे ट्रस्टियों की रही। यद्यपि पूर्व में अखिल भारतीय जैन युवा फैडरेशन, बापूनगर, जयपुर द्वारा बहुत पहले सन् 1987 में वृहद् आध्यात्मिक पाठ संग्रह प्रकाशित किया गया। कई वर्षों का अन्तराल होने के कारण व वर्तमान के और भी आध्यात्मिक रचनाकारों की अध्यात्मप्रेरक रचनाओं को सङ्कलित व प्रकाशित करने के लिए हमारे ट्रस्टियों की भावना हुई। प्रस्तुत पाठ संग्रह को नवीनतम और सर्वजनहिताय का रूप देकर आदरणीय पं. अभयकुमारजी देवलाली ने सम्पादन का कार्य सँभाला। उन्हीं की पावन प्रेरणा से आदरणीय बा.ब्र. रवीन्द्रकुमारजी आत्मन् ' की समाज में प्रचलित रुचिकर अध्यात्म व वैराग्य पोषक रचनाओं को सम्मिलित किया गया। ट्रस्ट उनका विशेष आभार मानता है। ____ साहित्य प्रकाशन में अशुद्धि न रह जाये एतदर्थ डॉ. वीरसागर जैन दिल्ली ने इस सङ्कलन की विशेष प्रूफ-रीडिंग कर निश्चय ही समाज का उपकार किया है। साथ ही सम्पादक पं. अभयकुमारजी देवलाली एवं पं. नितुलकुमार शास्त्री 'ध्रुवधाम' ने भी इस कृति की प्रूफ-रीडिंग में सराहनीय सहयोग दिया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 ... 418