Book Title: Bikhare Moti Author(s): Hukamchand Bharilla, Yashpal Jain Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur View full book textPage 6
________________ भी लेख प्राप्त हो सकते हैं। इन यत्र-तत्र बिखरे लेखों के संग्रह का नाम ही बिखरे मोती हैं। 'बिखरे मोती' पुस्तक के तीन खण्ड हैं। प्रथम खण्ड में आचार्य कुन्दकुन्दादि महानुभावों से संबंधित लेख हैं, जिसका नाम हमने 'जिन्हें भूलना संभव नहीं', यह दिया है। द्वितीय खण्ड सामाजिक है। इसमें आपतकालीन प्रसंगों पर लेखक ने समाज को यथोचित मार्गदर्शन दिया है । मैं यह अपेक्षा रखता हूँ - कोई भी जैन या जैनेतर भाई सामाजिक खण्ड को मनोयोगपूर्वक पढ़ेगा तो उसका दिल व दिमाग अत्यन्त संतुलित हुए बिना नहीं रहेगा। इस खण्ड में व्यक्त रीति-नीति से प्रत्येक मनुष्य का व्यक्तिगत या सामाजिक जीवन सुखी एवं समाधानी हुए बिना नहीं रहेगा। जिसका जीवन आध्यात्मिक विचारों से सराबोर रहता है, उनका सामाजिक जीवन कितना सहज व शांतिमय बन जाता है; इसका यह विभाग उदाहरण है। मैं तो साधर्मियों से यह अपील करना चाहता हूँ कि वे अपने साधर्मी मित्रों को प्रेम एवं सहजता अथवा हठपूर्वक भी इस सामाजिक विभाग को जरूर पढ़ने के लिए बाध्य करें, उसका फल मधुर ही मिलेगा। तृतीय खण्ड सैद्धान्तिक है, यथानाम इसमें जो लेख हैं, वे अनेक वर्ष पूर्व लिखे गये हैं। वे लेख तो छह ही इसमें हैं; किन्तु उनमें व्यक्त विचारधारा एवं कथन पद्धति और लेखक की वर्तमान कालीन साहित्य सृजन में एकरूपता देखकर लेखक के तात्त्विक निर्णय की एकरूपता की झलक स्पष्ट हो जाती है। ___ पाठक इस लेख संग्रह - बिखरे मोती का अपने जीवन में उपयोग करेंगे ही, यह मुझे मात्र आशा ही नहीं, विश्वास है । पाठक अपना अभिप्राय मुझे लिखकर जानकारी देंगे तो उनकी जागरूकता का भी मुझे निर्णय होगा, आनन्द होगा। कुछ सुझाव हों तो वे भी लिखने का कष्ट करें। - ब्र. यशपाल जैनPage Navigation
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