Book Title: Bikhare Moti Author(s): Hukamchand Bharilla, Yashpal Jain Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur View full book textPage 3
________________ प्रकाशकीय डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल इस शताब्दी के जैनदर्शन के प्रकाण्ड विद्वानों में अग्रगण्य हैं। उनकी प्रवचनशैली जहाँ समाज को मंत्रमुग्ध कर देती है, वहीं उनकी लेखनी से प्रसूत अध्यात्म का भण्डार जनमानस को ज्ञानसागर में गोते लगाने का प्रभावी साधन बन गया है। प्रस्तुत प्रकाशन उनके यत्रतत्र प्रकाशित निबन्धों का संकलन है, जो 'बिखरे मोती' के रूप में आपके सम्मुख प्रस्तुत है। __'बिखरे मोती' नामक इस कृति में प्रकाशित निबन्धों को तीन श्रेणियों में विभक्त किया गया है। इसके प्रथम भाग में व्यक्ति विशेष को केन्द्रित कर लिखे गए लेख हैं। दूसरे भाग में सम-सामयिक विषयों पर आधारित लेख हैं। तीसरे भाग में सैद्धान्तिक विषयों पर लिखे गए लेख समाहित हैं। ___ डॉ. भारिल्ल का सम्पूर्ण साहित्य विविध विधाओं पर केन्द्रित है। गद्य और पद्य पर उनका समान अधिकार है। एक ओर वे सफल कहानीकार हैं तो दूसरी ओर वे पत्रकारिता के क्षेत्र में भी पूरा दखल रखते हैं। इस संग्रह में उनके कई लेख विवेकी के नाम से लिखे गए लेख हैं, जो कभी जैनपथ प्रदर्शक में 'दूध का दूध पानी का पानी' नामक स्तम्भ की शोभा बढ़ाते थे। __ यत्र-तत्र बिखरे इन मोतियों को चुन-चुनकर माला के रूप में पिरोने का श्रेय ब्र. यशपालजी को जाता है। उनके द्वारा गूंथी गई यह मणिमाला आप सबको नई दिशा प्रदान करेगी - ऐसी आशा है । इस महान कार्य के लिए ब्र. यशपालजी बधाई के पात्र हैं । इसके प्रकाशन का दायित्व विभाग के प्रभारी अखिल बंसल ने सम्हाला है, अत: ट्रस्ट उनका आभारी है। जिन महानुभावों ने पुस्तक की कीमत कम करने हेतु अपना आर्थिक सहयोग प्रदान किया है, वे महानुभाव भी धन्यवाद के पात्र हैं । सभी आत्मार्थी इस बिखरे मोती कृति से लाभान्वित हों, इसी भावना के साथ। - नेमीचन्द पाटनीPage Navigation
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