Book Title: Bhavanbhushan Bhushanbhavan Kavya
Author(s): Bhuvanchandravijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 2
________________ ४४ अनुसन्धान-५० विषय श्री नेमिकुमारना लग्ननो प्रसंग छे. मुख्यत्वे नेमिकुमार तथा नेमिकुमारनो महेल- ए बन्नेनुं वर्णन एक साथे थाय तेवी व्यर्थक रचना छे परन्तु राजीमती, द्वारिका, रैवताचल आदिनुं वर्णन पण आमां सामेल छे. चित्रकाव्य होवाथी एकाक्षर, व्यक्षर, छत्रबन्धादि बंध, श्लेष, यमक, वगेरे आ काव्यमां प्रचुर रीते प्रयोजाया छे. अनेकार्थक श्लोको, प्रहेलिका अने शब्दचातुरी पण एटला ज प्रमाणमां जोवा मळे छे. शब्दचातुरीनो एक नमूनो - (अ. ४, श्लोक ९) "रम्यवदना राजीमती, तारा वरनुं नाम बहु सुंदर छे, ते मने कहे ने!" - सखी. "शैवेय" - राजीमती. "एटले शिवानो पुत्र ने ? तो शुं ए गणपति छे के पछी शियाळ छे ?" - सखी. (शिवा = दुर्गा, तथा शिवा = शियाळी) "नहि, नहि, आयुष्मती, ए तो माधवना बन्धु छे' - राजीमती. "कृष्णना बन्धु एटले हलधर बलराम ज ने ?" "ना, ना, नेमि' - राजीमती "तो शुं चन्द्र छे ?' - सखी. - राजीमतीनी सखीओनी वरसम्बन्धी आवी शब्दलीलावाळी वाणी शोभी रही छे." अहीं श्लोकमां चन्द्र माटे कवि 'चमाः' शब्द वापरे छे. टिप्पणमां आनो अर्थ 'हिमकर' अर्थात् चन्द्र दर्शाव्यो छे. आ शब्द कोशमां जडतो नथी. आq केटलुक कविसम्प्रदायथी ज जाणी शकाय. कूटकाव्य/चित्रकाव्य होवाथी रचना यद्यपि क्लिष्ट छे तो पण बुद्धिने चमत्कृत करनारी होवाथी रसप्रद बने छे. कविनी विद्वत्ता, कल्पनाशक्ति, शब्दसमृद्धि, रचनाचातुरी काव्यमां झळहळी रहे छे. अन्तिम श्लोकमां कवि स्वयं कहे छे : "(आ काव्य वांचीने) ईर्ष्याळुनुं मुख वक्र थशे अने मन्दमतिवाळानी काया संकोच पामशे." अर्थात् शरम अनुभवशे.

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