Book Title: Bhav Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

Previous | Next

Page 5
________________ पुरोवाक् श्री ब्रह्मचारी विनोद कुमार जी एवं ब्र. अनिल कुमार जी निरन्तर स्वाध्याय में लीन रहते हैं। श्री वर्णी दिग. जैन गुरुकुल के उच्चतम स्नातक हैं। अनेक वर्षों तक यहाँ अध्ययन कर आप दोनों ने चारों अनुयोगों का अच्छा ज्ञान प्राप्त किया है। उसके फलस्वरूप आपके द्वारा अनूदित / सम्पादित प्रकृतिपरिचय, सिद्धान्त - सार, ध्यानोपदेश-कोष प्रकाशित हो चुके हैं। जिन्हें विद्वत् - समाज ने सम्मानित किया है। दोनों ही ब्रह्मचारी प्रगतिशील हैं अब आपके द्वारा "भाव त्रिभङ्गी" आचार्य श्री श्रुतमुनि विरचित प्रकाश में आ रही है। इसका प्रकाशन गंगवाल धार्मिक ट्रस्ट, नयापारा, रायपुर की ओर से हो रहा है। दोनों ब्रह्मचारी विद्वान् इसी तरह अपने अध्ययन का मधुरफल समाज को प्रदान करते रहें ऐसी मनोभावना है। विनीत डा. पं. पन्ना लाल जैन साहित्याचार्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 ... 158