Book Title: Bhav Sangrahadi
Author(s): Pannalal Soni
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
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नार्थ' लिखवाई जाकर सोम नामक ब्रह्मचारीको दान की गई थी। जयपुर राज्यके मोजाबाद नामक स्थानमें यह प्रथ लिखा गया था । प्रशस्तिकी नकल दी जाती है । कहनेकी आवश्यकता नहीं कि इसकी संस्कृत बहुत ही अशुद्ध है:___ " इति भावसंग्रहः समाप्तः। श्लोकसंख्या ९६० । सम्पूर्ण । संवतु १६२७ वर्षे फाल्गुन वदि ५ स्वातिनक्षत्रे बुधवारे श्री आदिजिनचैत्यालये मोजावादिस्थाने राजश्रीमानसिंघकुछाहराज्ये श्रीमूलसंधे नंद्यामनाये बलात्कारगणे सरस्वतीगच्छे श्रीकुंदकुंद आचार्यान्वये भट्टारकश्रीपद्मनंदिदेवा तत्पट्टे भट्टारकश्रीशुभचंद्रदेवा तत्पट्टे भट्टारकश्रीजिनचंद्रदेवा तत्पट्टे भट्टारकश्रीप्रभाचंद्र. देवा तत्तिक्ष मंडलाचार्यश्रीधर्मचंद्रदेवा तत्सिक्ष मंडलाचार्यश्रीललतकीर्ति तत्सिक्षमंडलाचार्य चंद्रकीर्तिदेवा तदामनाये षंडेलवालान्वये गोधागोत्रे सा. ठाकुर तत्भार्या लाछी तत्पुत्र चत्वारि प्रथ. तेजा दु. केल्हा ति. बैराज चु. रेषा । तेजाभार्या चागुल दु. लक्ष्मी पु. हठु । केल्हा केलवदे पुत्र नरयण दु. नरवद त्रि. गोपाल चु. सारग । षैराज षैसरि पु. हेमा । सा. वोहिथ भार्या वहरगदे तत पुत्र देवसी एतेषां इदं सास्त्रं भावसंगहं लिषायतं धनायी अष्टाह्नकव्रत उद्यपनार्थ व्र. सोमाय दत्तं।" ___यह प्रति पहली प्रतिकी अपेक्षा विलक्षण है। इसके प्रारंभिक अंशमें अन्य प्रन्थोंके उद्धरणोंकी भरमार है । पहले हमारा खयाल था कि मूलग्रन्थकाने ही ये उद्धरण संग्रह किये होंगे; परन्तु विचार करनेसे मालूम हुआ कि नहीं, ग्रन्थकत्तीके बहुत बाद, किसी विद्वान लिपिकारने ही यह परिश्रम किया है। क्योंकि इसमें पं. वामदेवकृत संस्कृत भावसंग्रह तकके कई श्लोक * उद्धृत किये गये हैं और पं. वामदेव जैसा कि आगे बतलाया जायगा—विक्रमकी १६ वीं शता. ब्दिके विद्वान् हैं। इसी तरह यशस्तिलक चम्पूके भी अनेक पद्य 'उक्तंचरूपमें दिये गये हैं और यशस्तिलक वि० सं० १०१६ में समाप्त हुआ है।
___ * देखिए प्राकृत भावसंग्रहके पृष्ठ २४ की टिप्पणी और संस्कृत भावसंग्रहके १६९-७०-७१ नम्बरके श्लोक ।
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