Book Title: Bhav Sangrahadi
Author(s): Pannalal Soni
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
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नमः सिद्धेभ्यः ।
भावसंग्रहादिः ।
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श्रीदेवसेनसूरिविरचितो भावसंग्रहः ।
पणविय सुरसेणणुयं मुणिगणहरवंदियं महावीरं । वोच्छामि भावसंगह मिणमो भव्वप्यवोह ॥ १ ॥ प्रणम्य सुरसननुतं मुनिगणधरवन्दितं महावीरम् | वक्ष्ये भावसंग्रहमेतं भव्य प्रबोधनार्थम् || जीवस्स होंति भावा जीवा पुण दुविहभेयसंजुत्ता । मुत्ता पुण संसारी मुत्ता सिद्धा णिरेवलेवा ॥ २ ॥
जीवस्य भवन्ति भावा जीवाः पुनर्द्विविधभेदसंयुक्ताः । मुक्ताः पुनः संसारिणो मुक्ताः सिद्धा निरखलेपाः ॥ लोयग्गसिहरवासी केवलणाणेण मुणियत लोया । असरीरा गइरहिया सुणिच्चला सुद्धभावट्ठा || ३ ॥ १ हुंति ख । २ रु. ख । ३ य. ख ।
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