Book Title: Bhav Sangrahadi Author(s): Pannalal Soni Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti View full book textPage 9
________________ उक्त शिलालेख लिखवाया गया हैं, तो वह निषद्या और प्रशंसा इन्हींकी हो सकती है । भाव - त्रिभंगीका दूसरा नाम ' भावसंग्रह' भी है । अनेक प्रतियोंमें 'भावसंग्रह ' नाम ही लिखा है । भाव - त्रिभंगी और आस्रव - त्रिभंगी ये दोनों ग्रन्थ बम्बई के तेरहपंथी मन्दिरकी एक जीर्ण प्रति परसे - जिसमें लिखनेके संवत् आदिका अभाव है--छपाये गये हैं । प्रति प्रायः शुद्ध है । इस संग्रहके तीनों प्राकृतग्रन्थोंकी संस्कृतच्छाया पं० पन्नालालजी सोनीने की है । मूल प्रतियों में छायाका अभाव था । जिन जिन पुस्तकालयों या सरस्वती भण्डारोंकी प्रतियोंसे इन ग्रन्थोंके प्रकाशित करने में सहायता मिली है, उनके अधिकारियोंके प्रति हम हार्दिक कृतज्ञता प्रकाश करते हैं और आशा करते हैं कि उनसे आगे भी हमें इसी प्रकार सहायता मिलती रहेगी । बम्बई, आश्विन सुदी १५ वि० सं० १९७८ वि० । Jain Education International निवेदकनाथूराम प्रेमी । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 328