Book Title: Bhartiya Sahitya ke Nirmata Anandghan
Author(s): Kumarpal Desai
Publisher: Sahitya Academy

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Page 50
________________ 1. 2. 3. 4. परम्परा और आनंदघन : 45 टिप्पण स्तुतिर्द्विधा प्रमाणरूपा, असाधारणगुणोत्कीर्तनरूपा च आवश्यक सूत्रे ! नवमी द्वात्रिंशिका, पं. सुखलालजी, प्रकाशक भारतीय विद्याभवन, बम्बई (ई.स. 1945 ) Jain Education International 1 'स्तोत्रावली', प्रधान संपादक : पू. श्री यशोविजयजी महाराज, संपादक उपोद्घात : लेखक : डॉ. रुद्रदेव त्रिपाठी, पृ. 47 से 54 (1975) 'वीणा', ले. आचार्य क्षितिमोहन सेन, संपादक : कालिकाप्रसाद दिक्षित कुसुमाकर, वर्ष 12, अंक 1 (1938), पृ. 3 से 132 तक (क) आनंदघन एक अध्ययन, स्तवन : 4, गाथा: 5 (ख) आनंदघन एक अध्ययन, स्तवन : 13, गाथा : 6 (ग) आनंदघन एक अध्ययन, स्तवन : 16, गाथा 3 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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