Book Title: Bharateshwar Bahubali Vrutti Part_2
Author(s): Shubhshil Gani
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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प
ए काळमां पूज्यपाद, सद्धर्मोद्धारक, न्यायाम्मोनिधि आचार्यदेव श्रीमद् विजयानंदसूरीश्वरजी महाराजानु एकछत्र साम्राज्य प्रवर्ती रह्यु हतुं. ए महापुरुषना शिष्यरत्न पूज्यपाद उपाध्याय श्रीमद् वीरविजयजी महाराजानी पासे दीपचंदे वि. सं. १९४६ मां बावीश वर्षनी, यौवनना आंगणामां पगरण मांडी चूकेली वये दीक्षा लीधी. यौवन दीपचंदने विलासना अंधकारमा घसडी शक्युं नहि. पण
विरागे यौबनने त्यागमा घसड्यु. का दीपचंदनो उत्कर्ष प्रतिदिन वधतो गयो. तेमनुं नाम मुनि श्रीदानविजयजी राखवामां आवेलु. सतत् अभ्यास अने प्रखर संयम पाल
नथी श्रीदानविजयजी विद्वान बन्या, तपस्वी बन्या, अने मुनिराजोमां विशिष्ट स्थान भोगववा लाग्या. ज्योतिषना विषयमा तेमनो निर्णय
जैनसमाज माटे निःशंकपणे स्वीकार्य मनावा लाग्यो. श्रीजिनागमो अने वीजा दार्शनीकादि शास्त्रोना गहन अभ्यासथी तेओश्री श्रीजैनका दर्शनना परम रहस्यज्ञाता बन्या अने तेओश्रीना वचनोनी पण एक सरखी रीतिए उंडी असर थवा लागी. विधिविधान जेवा सूक्ष्म | विषयोमां पण तेओश्री एटला निष्णात हता के तेमनी सलाह मल्या पछीथी शंकाने स्थान रहेतुं नहि.
आ महापुरुषना दिलमां शासनरक्षानी तमन्ना ठांसी ठांसीने भरायेली होय एम लागतुं हतुं. आथी आवा विद्वान, चारित्रपात्र अने | शासनने समर्पित महापुरुपने पूज्यपाद सद्धर्मसंरक्षक निःस्पृहशिरोमणी आचार्यदेव श्रीमद् विजयकमळसूरीश्वरजी महाराजाए श्रीआचार्यपद उपर वि. सं. १९८१ मां आरूढ कर्या. पू० श्रीविजयकमळसूरीश्वरजी महाराजने पू० श्रीविजयानंदसूरीश्वरजी महाराजानी पाटे सर्व मुनिवरोए स्थापित कर्या हता, अने तेओश्रीए पोतानी पादे आ महापुरुषनी स्थापना करी. आ महापुरुषने गणी, अने पंन्यासपदथी वि. सं. १९६२ मां खंभातमां विभूपित करवामां आव्या हता.
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