Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत-भैषज्य रत्नाकरः .. [मकारादि (५०००) मधकादि शीतकषायः (५००३) मन्थादियोगः (च. सं. चि. अ. ३ ६ रा.; वा. भ. चि. अ. १) (यो. र. मूत्रकृच्छ्रा .) मधुकमुस्तमृद्वीकाकाश्मर्याणि परूषकम् । मन्थं पिबेद्रा ससितं ससर्पिः त्रायमाणमुशीराणि त्रिफलां कटुरोहिणीम् । शृतं पयो वाऽर्धसिताप्रयुक्तम् । पीत्वा निशि स्थितं जन्तुवरात् शीघ्रं विमुच्यते॥ धात्रीरसं चेक्षुरसं पिबेद्वाऽ
महुवा, नागरमोथा, मुनक्का, खम्भारीके फल, भिघातकृच्छ्रे मधुना विमिश्रम् ॥ फालसा [फल], त्रायमाना, खस, त्रिफला और सत्तमें थोड़ासा घी डालकर उसे शीतल जल में कुटकी समानभाग लेकर सबको कूटकर रातको घोल लें इसमें मिश्री मिलाकर पीनेसे अथवा दूधको मिट्टीके बरतनमें पानीमें भिगो दें और दूसरे दिन पका कर उसमें उससे आधी मिश्री मिलामल छान कर पियें।
कर पीनेसे या आमले अथवा ईखके रसमें शहद इसके सेवनसे ज्वर शीघ्र ही नष्ट हो जाता | मिलाकर पीनेसे अभिघातज मूत्रकृच्छ नष्ट होता है। है । ( यह कषाय पत्तवरके लिये है ) __(५००४) मयूरशिखामूलयोगः
(५००१) मधूदकयोगः (ग. नि. । वन्ध्या. ५; रा. मा. । स्त्रीरोगा. ३०)
(रा. मा. क्षुद्ररोगा. २९) शिफा बर्हिशिखायास्तु क्षीरेण परिपेषिताम् । विज्ञाय यः शीतलिकोपसर्ग
पिबेतुमती नारी गर्भधारणहेतवे ।। __ प्रवृत्तमादौ मधुना विमिश्रम् ।
मयूरशिखाकी जड़को दूधमें पीसकर ऋतुपिबेज्जलं पर्युषितं नरस्य
मती (रजस्वला) स्त्रीको पिलानेसे वह गर्भ धारण नो सम्भवन्ति ज्वरदर्शनेऽपि ॥ कर लेती है।
मसूरिका (माता) के निकलनेकी सम्भावना (५००५) मरिचादिकषायः होते ही रातको पानीमें थोड़ा शहद मिलाकर
(ग. नि.। वाता. १९) रखदें और प्रातःकाल वह पानी रोगीको पिलावें ।
कोपिलावें। पिवति कषायं जन्तुर्मरिचमहादारुनागराणां यः। ___ यदि ज्वर हो जाने पर भी यह प्रयोग किया
तैलेनापि च मिश्रं स भवति वातेन निर्मुक्तः जाय तब भी शीतला नहीं निकलती।
काली मिर्च, देवदारु और सेठके काश्रमें (५००२) मध्यादियोगः
तैल मिलाकर पीनेसे वातव्याधि नष्ट होती है । (वै. म. र. पटल १५)
(५००६) मरिचादिकाथः (१) मधुमधूकमागधीनां खजूरशतावरीकशेरुणाम् ।
(भा. प्र. । म. खं. ज्वरा.) सविदारीणां कल्कः पानादुन्मादमपहरति ॥ मरिचं पिप्पलीमूलं नागरं कारवी कणा।
मुलैठी, महुआ, पीपल, खजूर, शतावर, कसेरु, चित्रकं कट्फलं कुष्ठं ससुगन्धि वचा शिवा ।। और बिदारीकन्द को पीसकर शहदमें मिलाकर
कण्टकारीजटा शृङ्गी यवानी पिचुमन्दकः । पीनेसे उन्माद नष्ट होता है ।।
एषां काथो हरत्येव ज्वरं सोपद्रवं कफात् ।।
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