Book Title: Bharat Bahubali Mahakavyam
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishwa Bharati

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Page 14
________________ प्रस्तुति विधा की दृष्टि से काव्य दो प्रकार के माने जाते हैं-प्रेक्ष्य और श्रव्य। जो रंगमंच पर अभिनीत होते हैं वे 'प्रेक्ष्य' और जो सुने या पढ़े जाते हैं वे 'श्रव्य' काव्य होते हैं । आचार्य हेमचन्द्र ने प्रेक्ष्य काव्य के दो भेद किए हैं—पाठ्य और गेय । नाटक, प्रकरण आदि पाठ्य और रासक आदि गेय काव्य होते हैं। शैली के आधार पर श्रव्य काव्य के तीन प्रकार होते हैं-गद्य, पद्य और चम्पू । विषय-वस्तु की योजना की दष्टि से पद्य काव्य दो प्रकार का होता है-प्रबन्ध काव्य और मुक्तक काव्य । प्रबंध काव्य महाकाव्य और खण्डकाव्य-इन दो भागों में विभक्त होता है। खण्डकाव्य में जीवन के विविध रूप चित्रित नहीं होते, उसके किसी अंगविशेष का ही चित्रण होता है । वह चित्रण अपने आप में पूर्ण होता है। महाकाव्य में जीवन का सर्वांगीण चित्रण होता है। उसका नायक किसी प्रख्यात राजवंश में उत्पन्न और धीरोदात्त होना चाहिए । उसकी रचना छंदोबद्ध होनी चाहिए। छन्द का प्रयोग प्रतिपाद्य-विषय के अनुकूल तथा सर्ग का अन्तिम श्लोक भिन्न छन्द का होना चाहिए। उसके सर्ग आठ से अधिक होने चाहिएं। प्रारंभ में मंगलाचरण का होना आवश्यक है। उसमें शृंगार, वीर और शान्त- इनमें से कोई एक रस प्रधान और शेष रस गौण होने चाहिएं । उसका नाम कथावस्तु या चरितनायक के नाम पर होना चाहिए। .. प्रस्तुत रचना का नाम 'भरतबाहुबलिमहाकाव्यं' है। पंजिकाकार ने इसे महाकाव्य बतलाया है। महाकाव्य के उक्त मानदण्डों के आधार पर इसे विशुद्ध महाकाव्य या खण्डकाव्य की कोटि में नहीं रखा जा सकता। इसमें जीवन का सर्वांगीण चित्रण नहीं है । इसमें मुख्यतः भरत और बाहुबली के जीवन का एक पक्षयुद्ध का प्रसंग वर्णित है । प्रारंभ में मंगलाचरण नहीं है। इसका प्रारंभ इस श्लोक से होता है अथार्षमिर्भारतभूभुजां बलाद्, हृतातपत्रः स्वपुरीमुपागतः। विमृश्य दूतं प्रजिघाय वाग्मिनं, ततौजसे तक्षशिलामहीभुजे ॥ (१११) उक्त दृष्टिकोण से इसे महाकाव्य की कोटि में नहीं रखा जा सकता। १. साहित्य दर्पण ६।३२६: खण्डकाव्यं भवेत् काव्यस्यैकदेशानुसारि च ।

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