Book Title: Bhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Author(s): Jawaharlal Aacharya
Publisher: Jawahar Vidyapith

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Page 4
________________ प्रकाशकीय साधुमार्गी जैन परम्परा में महान् क्रियोद्धारक आचार्यश्री हुक्मीचंदजी म.सा. की पाट-परम्परा में षष्ठ युगप्रधान आचार्यश्री जवाहरलालजी म.सा. विश्व-विभूतियों में एक उच्चकोटि की विभूति थे, अपने युग के क्रांतदर्शी, सत्यनिष्ठ, तपोपूत संत थे। उनका स्वतन्त्र चिन्तन, वैराग्य से ओत-प्रोत साधुत्व, प्रतिमा सम्पन्न वक्तृत्वशक्ति एवं भक्तियोग से समन्वित व्यक्तित्व स्व-पर-कल्याणकर था। आचार्यश्री का चिन्तन सार्वजनिक, सार्वभौम और मानव मात्र के लिए उपादेय था। उन्होंने जो कुछ कहा वह तत्काल के लिए नहीं, अपितु सर्वकाल के लिए प्रेरणापुंज बन गया। उन्होंने व्यक्ति, समाज, ग्राम, नगर एवं राष्ट्र के सुव्यवस्थित विकास के लिए अनेक ऐसे तत्त्वों को उजागर किया जो प्रत्येक मानव के लिए आकाशदीप की भाँति दिशाबोधक बन गये। आचार्यश्री के अन्तरंग में मानवता का सागर लहरा रहा था। उन्होंने मानवोचित जीवनयापन का सम्यक् धरातल प्रस्तुत कर कर्तव्यबुद्धि को जाग्रत करने का सम्यक् प्रयास अपने प्रेरणादायी उद्बोधनों के माध्यम से किया। __ आगम के अनमोल रहस्यों को सरल भाषा में आबद्ध कर जन-जन तक जिनेश्वर देवों की वाणी को पहुंचाने का भगीरथ प्रयत्न किया। साथ ही, प्रेरणादायी दिव्य महापुरुषों एवं महासतियों के जीवन-वृत्तान्तों को सुबोध भाषा में प्रस्तुत किया। इस प्रकार व्यक्ति से लेकर विश्व तक को अपने अमूल्य साहित्य के माध्यम से सजाने-संवारने का काम पूज्यश्रीजी ने किया है। अस्तु! आज भी समग्र मानवजाति उनके उद्बोधन से लाभान्वित हो रही है। इसी क्रम में श्री भगवती सूत्र व्याख्यान भाग-1, 2 किरणावली का यह अंक पाठकों के लिए प्रस्तुत है। सुज्ञ पाठक इससे सम्यक् लाभ प्राप्त करेंगे। युगद्रष्टा, युगप्रवर्तक, ज्योतिर्धर, आचार्यश्री जवाहरलालजी म.सा. का महाप्रयाण भीनासर में हुआ। आपकी स्मृति को अक्षुण्ण रखने और आपके कालजयी प्रवचन-साहित्य को युग-युग में जन-जन को सुलभ कराने हेतु समाजभूषण, कर्मनिष्ठ, आदर्श समाजसेवी स्व. सेठ चम्पालालजी बांठिया का चिरस्मरणीय, श्लाघनीय योगदान रहा। आपके अथक प्रयासों और समाज के उदार सहयोग से

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