Book Title: Bhagvati Sutram Part 04 Author(s): Sudharmaswami, Publisher: Hiralal Hansraj View full book textPage 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir सके व्याख्याप्राप्ति ८४१॥ ४१ थियु. ते लावण्यशून्य, प्रभारहित अने शोभाविनानि थइ गइ. तेना आभूषणो ढीलां थह गया, अने तेथी तेना निर्मल वलयो पड़ी गयां अने भांगीने चूर्ण थइ गया. तेनु उत्तरीय वस्त्र शरीर उपरथी सरी गयुं, अने मूविडे तेनुं चैतन्य नष्ट थयु होवाथी ते भारे शरीरवाळी थइ गई. तेनो सुकुमाल केशपाश विसराइ गयो. कुहाडीना घाथी छेदाएली चंपकलतानी पेठे अने उत्सव पूरो थता इन्द्रध्वजदंडनी जेम तेनां संधिबंधनो शिथिल थह गयां, अने ते फरसबंधी उपर सर्व अंगोवडे 'वस्' दइने नीचे पडी गइ. त्यार पछी ते जमालि क्षत्रियकुमारनी माताना शरीरने (दासीवडे) व्याकुलचित्ते त्वराथी ढळाता सोनाना कलशनामुखथीनीकळेली शीतल भने ६ निर्मल जलधाराना सिंचनवडे स्वस्थ कर्य, अने ते उत्क्षेपक (वांसना बनेला),तालवृंत (ताडना पांदडाना ननेला) पंखा अने वीजणाना जलबिन्दुसहित पवनवडे अंतःपुरना माणसोथी आश्वासनने प्राप्त थइ. रोती, आक्रंदन करती, शोक करती अने विलाप करती ते जमालि क्षत्रियकुमरनी माता एप्रमाणे कहेवा लागी-'हे जात ! तुं अमारे इष्ट, कांत, प्रिय, मनोन, मन गमतो, आधारभूत, विश्वासपात्र, संमत, बहुमत, अनुमत, आभरणनी पेटी जेवो, रत्नस्वरूप, रत्नना जेवो, जीवितना उत्सव समान अने हृदयने आनंदजनक एमज पुत्र छो. वळी उंबरानापुष्पनी पेठे तारा नामनु श्रवण पण दुर्लभ छे, तो तारुं दर्शन दुर्लभ होय एमां शुं कहे ? माटे हे पुत्र ! खरेखर अमे तारो एक क्षण पण वियोग इच्छता ना. तेथी हे पुत्र ! ज्यां मुधी अमे जीवीए छीए त्यांसुधी तुं रहे. अने अमे कालगत थया पछी वृद्धावस्थामा कुलवंचतन्तुनी वृद्धि करीने निरपेक्ष एवो तुं श्रमण भगवंत महावीरनी पासे दीक्षा ग्रहण करी गृहवासनो त्याग करी अनगारिकपणाने स्वीकारजे.' तए णं से जमाली बत्तियकुमारे अम्मापियरो एवं क्यासी-तहावि णं तं अम्मताओ! जण्णं तुझे मम For Private And PersonalPage Navigation
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