Book Title: Bauddh Pramana Mimansa ki Jain Drushti se Samiksha
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 9
________________ बौद्ध प्रमाण-मीमांसा की जैनदृष्टि से समीक्षा अनन्तवीर्य, माणिक्यनन्दी, वादिराज,अभयदेवसूरि,प्रभाचन्द्र,वादिदेव सूरि, हेमचन्द्र आदि अनेक जैन दार्शनिकों ने जैन प्रमाणमीमांसा को तार्किक दृष्टि से पुष्ट एवं समृद्ध किया। ___बौद्धों का तार्किक संघर्ष जितना न्याय एवं मीमांसा दर्शनों के साथ रहा,उतना जैन दर्शन के साथ नहीं । धर्मकीर्ति,शान्तरक्षित,अर्चट आदि के ग्रंथों में जैनों के अनेकान्तवाद,हेतुलक्षण, बहिरर्थवाद आदि का खण्डन अवश्य हुआ है,किन्तु ८ वीं से ११ वीं शती के जैन दार्शनिक ग्रंथ बौद्ध प्रमाण-मीमांसा के खण्डन से भरे पड़े हैं। बारहवीं शती में भारत से बौद्ध आचार्यों की परम्परा विलुप्त हो गयी , फलतः उत्तरवर्ती जैन प्रमाण-ग्रंथों में बौद्धों के खण्डनार्थ प्रायः प्राचीन तकों का ही पिष्टपेषण किया गया, इसलिए इस ग्रन्थ में चौथी-पांचवी शती से लेकर ग्याहरवीं-बारहवीं शती के प्रमुख जैन दार्शनिक-ग्रंथों को ही आधार बनाया गया है। ___ सम्प्रति बौद्ध एवं जैन दर्शन का अध्ययन अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर रुचि का विषय बना हुआ है । बौद्ध दर्शन का प्रभाव उसके समकालीन विभिन्न दर्शनों पर हुआ अतः उसका दार्शनिक परिप्रेक्ष्य में विशेष महत्त्व है । बीसवीं शती में बौद्ध प्रमाण-मीमांसा का अध्ययन करने वाले विद्वानों में श्चेरबात्स्की,सातकड़ि मुकर्जी,जी.टुची ,जी.सी.पाण्डे,टी.आर.वी. मूर्ति,डी.एन. शास्त्री,मसाकी हतौड़ी आदि प्रमुख हैं । जैन प्रमाणमीमांसा के अध्येता विद्वानों में प्रमुख हैं-पं. सुखलाल संघवी, पं. दलसुख मालवणिया, डॉ. महेन्द्र कुमार न्यायाचार्य, डॉ. दरबारी लाल कोठिया, पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री आदि ।किन्तु जैन ग्रंथों को आधार बनाकर बौद्ध प्रमाण-मीमांसा का विस्तृत खण्डन अभी तक प्रस्तुत नहीं हुआ है । नगीन जे. शाह ने मात्र अकलङ्क के ग्रंथों से धर्मकीर्ति के दर्शन का तत्त्वमीमांसीय एवं प्रमाणमीमांसीय खण्डन प्रस्तुत किया है। प्रस्तुत कृति में अकलङ्क के अतिरिक्त मल्लवादी क्षमाश्रमण, विद्यानन्द, अभयदेवसरि,प्रभाचन्द्र,वादिदेवसूरि एवं हेमचन्द्र के ग्रंथों से सम्पूर्ण बौद्ध प्रमाणमीमांसा का अनुशीलन किया गया है, जिससे जैन-बौद्ध-परम्परा के प्रमाणमीमांसीय विकास का सम्पूर्ण चित्र तो सामने आता ही है ,किन्तु जैन दार्शनिकों के प्रौढ अध्ययन एवं तार्किक कौशल का भी भान होता है । इसके अतिरिक्त जैन प्रमाणमीमांसा पर बौद्ध दार्शनिक प्रभाव भी स्पष्ट होता है ।जैन दार्शनिकों की यह उल्लेखनीय विशेषता रही कि वे जैनेतर सिद्धान्तों को पूर्वपक्ष में उनके मूलग्रन्थों से भी अधिक स्पष्ट रीति से निष्पक्षता के साथ प्रस्तुत करते हैं । बौद्धपक्ष को प्रस्तुत करते हुए भी उन्होंने अपनी इस विशेषता को सुरक्षित रखा है। समीक्ष्य-बिन्दु यह ग्रन्थ छह अध्यायों में विभक्त है । समस्त अध्यायों में जैन दार्शनिकों द्वारा किये गये खण्डन के पूर्व बौद्ध एवं जैन प्रमाण-मन्तव्यों को स्पष्ट किया गया है तथा खण्डन के अनन्तर उनका समाहार या समीक्षण भी किया गया है। जहां तक संभव हुआ है जैन दार्शनिकों के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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