Book Title: Balbodh Pathmala 2
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 15
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates पाठ तीसरा कषाय सुबोध – भाई तुम तो कहते थे कि आत्मा मात्र जानता-देखता है, पर क्या प्रात्मा क्रोध नहीं करता; छल-कपट नहीं करता ? प्रबोध – हाँ! हाँ!! क्यों नहीं करता ? पर जैसा आत्मा का स्वभाव जानना देखना है, वैसा आत्मा का स्वभाव क्रोध आदि करना नहीं। कषाय तो उसका विभाव है, स्वभाव नहीं। सुबोध – यह विभाव क्या होता है ? प्रबोध - आत्मा के स्वभाव के विपरीत भाव को विभाव कहते हैं। आत्मा का स्वभाव आनन्द है। मिथ्यात्व, राग-द्वेष (कषाय) आनन्द स्वभाव से विपरीत हैं, इसलिए वे विभाव हैं। सुबोध – राग-द्वेष क्या चीज़ है ? प्रबोध - जब हम किसी को भला जानकर चाहने लगते हैं, तो वह राग कहलाता है और जब किसी को बुरा जानकर दूर करना चाहते हैं, तो द्वेष कहलाता है। ११ Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com

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