Book Title: Balbodh Pathmala 2
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 40
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates जिनवाणी-स्तुति का भावार्थ हे जिनवाणीरूपी सरस्वती! तुम मिथ्यात्वरूपी अंधकार का नाश करने के लिये तथा आत्मा और परपदार्थों का सही ज्ञान कराने के लिये सूर्य के समान हो। छहों द्रव्यों का स्वरूप जानने में, कर्मो की बन्ध-पद्धति का ज्ञान कराने में, निज और पर की सच्ची पहिचान कराने में तुम्हारी प्रमाणिकता असंदिग्ध है। अतः हे जिनवाणी! भव्य जीवों ने तुमको अपने हृदय में धारण कर रखा है, क्योंकि तुम आत्मानुभव करने का, आत्मा की प्रतीति करने का तथा किसी को दुःख न हो, ऐसा – मार्ग बताने में समर्थ हो। एकमात्र जिनवाणी ही संसार से पार उतारने में समर्थ है एवं सच्चे सुख को पाने का रास्ता बताने वाली है। हे जिनवाणीरूपी सरस्वती! मैं तेरी ही पाराधना दिन-रात करता हूँ, क्योंकि जो व्यक्ति तेरी शरण में जाता है, वही सच्चा अतीन्द्रिय आनन्द पाता है। जिस वीतराग-वाणी का ज्ञान हो जाने पर सारी दुनिया का सही ज्ञान हो जाता है, उस वाणी को मैं मस्तक नवाकर सदा नमस्कार करता हूँ। प्रश्न - १. जिनवाणी की स्तुति लिखिये। २. स्तुति में जो भाव प्रकट किये हैं, उन्हें अपनी भाषा में लिखिये। ३. जिनवाणी किसे कहते हैं ? ४. जिनवाणी की आराधना से क्या लाभ है ? ३६ Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com

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