________________
( १९६) ॥ पद पाचमुं॥ राग काफी॥ ॥मति मत एम विचारो रे, मत मतीयनका नाव ॥म॥
ए आंकणी॥ वस्तुगतें वस्तु लदो रे, वाद विवाद न कोय॥ सूर तिहां परकाश पीयारे, अंधकार नवि दोय। म॥१॥ रूप रेख तिहां नवि घटे रे, मुझ नेख न होय ॥ नेद ज्ञान दृष्टि करी प्यारे,
Jain Educationa Intefratil@bsonal and Private Usevenly.jainelibrary.org